एलन मस्क के बयान से अमेरिका में नई बहस छिड़ी
मस्क का विवादास्पद बयान
टेस्ला के CEO एलन मस्क का हालिया बयान अमेरिका में एक नई चर्चा का विषय बन गया है। फोर्ड के CEO जिम फर्ले ने बताया कि उनकी कंपनी 5,000 मैकेनिक पदों को भरने में कठिनाई का सामना कर रही है, जिनकी सालाना सैलरी 1.20 लाख डॉलर है। इस पर मस्क ने कहा कि अमेरिका में कठिन शारीरिक श्रम करने या उसके लिए प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले लोगों की कमी है। उनके इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर यूज़र्स ने तीखी प्रतिक्रियाएँ दीं और इसे अमेरिकी श्रमिकों की वास्तविक स्थिति से भिन्न बताया।
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएँ
मस्क के बयान के तुरंत बाद सोशल मीडिया पर विरोध की लहर उठ गई। कई यूज़र्स ने कहा कि समस्या अमेरिकी युवाओं की इच्छाशक्ति नहीं है, बल्कि कंपनियों द्वारा अवसरों और अपरेंटिसशिप की कमी है। एक यूज़र ने लिखा कि उसका 22 वर्षीय बेटा महीनों से नौकरी की तलाश में है, सैकड़ों जगह आवेदन कर चुका है, लेकिन उसे इंटरव्यू भी नहीं मिला। कई लोगों ने आरोप लगाया कि कॉर्पोरेट क्षेत्र एक झूठा नैरेटिव बनाकर मजदूरी को कम रखता है और फिर विदेशी श्रमिकों को लाता है।
वर्कफोर्स पर उठे सवाल
कुछ यूज़र्स ने यह भी कहा कि अमेरिका की सैन्य ताकत उसके मेहनती लोगों से आती है, इसलिए यह कहना गलत है कि लोग कठिन काम नहीं करना चाहते। एक टिप्पणी में कहा गया कि पहले व्हाइट-कॉलर नौकरियों के बारे में गलत धारणाएँ फैलाई गईं, और अब वही बात ब्लू-कॉलर श्रमिकों पर लागू की जा रही है। लोगों का मानना है कि कॉर्पोरेट जगत "नो वन वॉन्ट्स टू वर्क" का तर्क देकर मजदूरी को दबाता है और श्रमिकों की छवि को खराब करता है।
H-1B वीज़ा पर बहस
यह विवाद उस समय उभरा है जब अमेरिका में H-1B वीज़ा को लेकर पहले से ही चर्चा चल रही है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में कहा कि देश को विदेशी प्रतिभा की आवश्यकता है, इसलिए उनका प्रशासन H-1B को समाप्त नहीं करेगा। लेकिन इसी दौरान कंपनियों पर विदेशी श्रमिकों की नियुक्ति के लिए 1 लाख डॉलर शुल्क लगाने की नीति ने उद्योग में उलझन पैदा कर दी है। कंपनियों को अब यह स्पष्ट नहीं है कि प्रशासन इस प्रोग्राम को कैसे आगे बढ़ाएगा।
नौकरी बाजार की चुनौतियाँ
विशेषज्ञों का कहना है कि कठिन नौकरियों की कमी का कारण युवा पीढ़ी नहीं है, बल्कि कंपनियों द्वारा कम निवेश, प्रशिक्षण कार्यक्रमों की कमी और उच्च कौशल ट्रेड्स के प्रति आकर्षण की कमी है। कई उद्योगों में एंट्री-लेवल अवसर बेहद सीमित हैं, जिससे योग्य उम्मीदवार भी नौकरी पाने में कठिनाई का सामना कर रहे हैं। मस्क के बयान ने इस समस्या पर नई बहस को जन्म दिया है, लेकिन आम लोगों का मानना है कि समाधान बेहतर प्रशिक्षण और पारदर्शी भर्ती प्रक्रिया में है, न कि श्रमिकों पर सवाल उठाने में।
