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गेहूं की नई किस्म में जीन की खोज से उपज में वृद्धि की संभावना

यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड के वैज्ञानिकों ने गेहूं की एक नई किस्म में एक महत्वपूर्ण जीन की पहचान की है, जो हर फूल में तीन ओवरी बनाने में सक्षम है। यह खोज गेहूं की प्रति एकड़ उपज को बढ़ाने में सहायक हो सकती है, जो वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। जानें इस खोज के पीछे की प्रक्रिया, इसके महत्व और भविष्य की योजनाओं के बारे में।
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गेहूं की नई किस्म में जीन की खोज से उपज में वृद्धि की संभावना

वैज्ञानिकों की महत्वपूर्ण खोज

यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड के शोधकर्ताओं ने गेहूं की एक अनोखी किस्म में एक ऐसा जीन खोजा है, जो हर फूल में एक के बजाय तीन ओवरी बनाने में सक्षम है। चूंकि हर ओवरी से दाना विकसित हो सकता है, यह खोज भविष्य में गेहूं की उपज को बढ़ाने में महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। यह अध्ययन एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक जर्नल में प्रकाशित हुआ है।


नई खोज का विवरण

वैज्ञानिकों ने यह पाया कि गेहूं की एक विशेष किस्म में WUSCHEL-D1 नामक जीन सामान्य से अधिक सक्रिय हो जाता है। आमतौर पर यह जीन निष्क्रिय रहता है, लेकिन जब यह फूल बनने के प्रारंभिक चरण में सक्रिय होता है, तो फूल के अंदर के ऊतकों का विस्तार होता है, जिससे एक ही फूल में अतिरिक्त ओवरी बनती हैं।


जीन की पहचान की प्रक्रिया

शोधकर्ताओं ने मल्टी ओवरी गेहूं का विस्तृत डीएनए मैप तैयार किया और इसे सामान्य गेहूं से तुलना की। इस तुलना से स्पष्ट हुआ कि जीन की गतिविधि में बदलाव ही इस असामान्य संरचना का कारण है। पहले यह गुण एक प्राकृतिक म्यूटेंट में देखा गया था, लेकिन इसके कारणों का पता नहीं चल पाया था।


किसानों और खाद्य सुरक्षा के लिए महत्व

गेहूं विश्वभर में अरबों लोगों का मुख्य आहार है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, वैश्विक जनसंख्या के बढ़ने के साथ गेहूं की मांग भी बढ़ रही है। जलवायु परिवर्तन, सीमित कृषि भूमि और पानी की कमी के कारण उत्पादन बढ़ाना एक चुनौती बन गया है।


विशेषज्ञों का मानना है कि यदि प्रति पौधा दानों की संख्या में थोड़ी वृद्धि होती है, तो इसका कुल उत्पादन पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है। इससे बिना अतिरिक्त भूमि या संसाधनों के खाद्यान्न की उपलब्धता में सुधार किया जा सकता है।


वैज्ञानिकों की दृष्टि

इस अध्ययन से जुड़े प्लांट साइंस विशेषज्ञों के अनुसार, जीन एडिटिंग तकनीकों के माध्यम से इस गुण को नियंत्रित या दोहराया जा सकता है। इससे ऐसी नई गेहूं की किस्में विकसित की जा सकती हैं जिनमें अधिक दाने हों और लागत भी कम हो।


भविष्य की योजनाएँ

आने वाले वर्षों में वैज्ञानिक इस जीन का परीक्षण विभिन्न जलवायु और मिट्टी की परिस्थितियों में करेंगे। इसके साथ ही यह भी देखा जाएगा कि क्या इसी तकनीक को चावल और जौ जैसी अन्य अनाज फसलों में भी लागू किया जा सकता है।


वैश्विक प्रभाव

यह खोज केवल प्रयोगशाला तक सीमित नहीं है। इसका सीधा संबंध वैश्विक खाद्य सुरक्षा से है। यदि यह तकनीक सफल होती है, तो यह विकासशील देशों में बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद कर सकती है।