दिल्ली के स्कूलों में बच्चों की सेहत के लिए नए कदम

बच्चों की खानपान आदतों में सुधार
देशभर के विद्यालयों में अब स्वास्थ्य के प्रति गंभीरता बढ़ रही है। विशेष रूप से दिल्ली के स्कूलों में बच्चों की खाने की आदतों को सुधारने के लिए कई ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। सीबीएसई के हालिया निर्देशों के अनुसार, स्कूलों में फैट, ऑयल और शुगर के दुष्प्रभावों के बारे में सूचना बोर्ड लगाए जा रहे हैं। कई स्कूल इससे आगे बढ़कर बच्चों के खाने के विकल्प और उनकी सोच को बदलने का प्रयास कर रहे हैं।
स्वस्थ मेन्यू का निर्माण
दिल्ली की फूड कंसल्टेंट प्रीति बाली इस बदलाव की महत्वपूर्ण कड़ी हैं। उन्होंने छह निजी स्कूलों के लिए हेल्दी और स्वादिष्ट मेन्यू तैयार किया है। बाली कहती हैं, “अगर बच्चे खाने के प्रति उत्साहित हों, तो वे यह नहीं पूछते कि उसमें मैदा है या नहीं।” उनके मेन्यू में बाजरा बर्गर, हंग कर्ड से बना कोलस्लॉ, घर की बनी चिप्स और ताजे मेडिटेरेनियन डिप्स शामिल हैं। उनका उद्देश्य बच्चों को बिना डांट-डपट के अच्छे विकल्प प्रदान करना है, ताकि वे खुद बेहतर चुनाव कर सकें।
कक्षा में स्वास्थ्य जागरूकता
आईटीएल पब्लिक स्कूल में छात्रों में खाने के प्रति जागरूकता बढ़ती जा रही है। स्कूल की कोऑर्डिनेटर रितु शर्मा बताती हैं कि हाल ही में शिमला ट्रिप पर गए 12वीं के छात्रों ने इंस्टैंट नूडल्स जैसी चीजें नहीं खाईं, बल्कि स्कूल द्वारा सुझाए गए हेल्दी विकल्पों को चुना। स्कूल में खाने से जुड़ी गतिविधियों और मेडिकल चेकअप जैसे प्रयास बच्चों की आदतों में सकारात्मक बदलाव ला रहे हैं। समाना गोस्वामी, जो 9वीं और 10वीं की कोऑर्डिनेटर हैं, मानती हैं कि इन कदमों से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार हुआ है।
घर पर भी असर
ममता मॉडर्न स्कूल की हेडमिस्ट्रेस शालिनी चौधरी बताती हैं कि उनके बेटे ने एक दिन कहा, “मां, कल अचार मत देना।” यह सुनकर उन्होंने महसूस किया कि स्कूल और दोस्तों का बच्चों पर कितना गहरा प्रभाव होता है। उनके स्कूल में अब 'फ्रूट एंड वेजिटेबल डे' आयोजित किए जाते हैं और शुगर-अवेयरनेस बोर्ड लगाए गए हैं। प्राथमिक कक्षाओं में माता-पिता का प्रभाव होता है, जबकि मिडिल स्कूल में दोस्ती और ट्यूशन शेड्यूल बच्चों की पसंद-नापसंद को प्रभावित करने लगते हैं।
पोषण और पसंद का संतुलन
डीपीएस मथुरा रोड और श्री वेंकटेश्वर इंटरनेशनल स्कूल जैसे संस्थान अब बच्चों की पसंद को नजरअंदाज नहीं कर रहे हैं, बल्कि उसमें सुधार कर रहे हैं। डीपीएस में अब राजमा चावल, सूजी पास्ता और छाछ जैसे व्यंजन परोसे जा रहे हैं। हफ्ते में एक दिन बच्चों की पसंद की चीजें जैसे फ्रेंच फ्राइज़ दी जाती हैं, लेकिन अन्य दिनों में हेल्दी खाने पर जोर दिया जाता है। श्री वेंकटेश्वर स्कूल में एक मोबाइल कैंटीन हर दिन अलग-अलग कक्षा के बाहर लगती है, ताकि सभी बच्चे हेल्दी विकल्पों तक पहुंच सकें। बच्चों का कहना है कि ट्यूशन और थकान के बीच कम से कम स्कूल में उन्हें सही खाना मिल रहा है।
छोटे कदम, बड़े बदलाव
स्कूलों में अब हेल्दी टिफिन वीक, अवेयरनेस प्रोजेक्ट्स और डेंटल हेल्थ जैसे विषय भी पढ़ाई में शामिल किए जा रहे हैं। अमिटी स्कूल, साकेत में राजमा चावल, इडली सांभर जैसे भारतीय व्यंजन परोसे जा रहे हैं। कई बच्चे अब मानते हैं कि उन्होंने धीरे-धीरे मीठा खाना कम किया है। डॉक्टर्स का मानना है कि बच्चों में हेल्दी आदतें बचपन से डालना आवश्यक है, क्योंकि गलत खानपान और स्क्रीन टाइम के मेल से कई बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। विशेषज्ञों की राय है कि बैन नहीं, बल्कि विकल्प देने चाहिए।