दुष्यंत दवे ने वकालत से लिया संन्यास, सामाजिक कार्यों पर ध्यान केंद्रित करेंगे

दुष्यंत दवे का वकालत से संन्यास
सुप्रीम कोर्ट के बार एसोसिएशन से एक महत्वपूर्ण समाचार आया है। वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने 48 वर्षों की वकालत के बाद इस पेशे से संन्यास लेने का निर्णय लिया है। हाल ही में उन्होंने अपना 70वां जन्मदिन मनाया। दवे ने अपने संदेश में कहा, 'मैंने वकालत छोड़ने का निर्णय लिया है। बार और बेंच के सभी मित्रों को अलविदा।' हालांकि, दवे या उनके सहयोगियों की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन उनके करीबी सूत्रों ने पुष्टि की है कि दवे अब मुकदमेबाजी की दुनिया से दूर होकर सामाजिक कार्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं।
70 वर्ष की आयु और भविष्य की योजनाएँ
दवे ने अपने इस फैसले का कोई विशेष कारण नहीं बताया। उन्होंने कहा, 'अब मैं 70 वर्ष का हो गया हूं। युवाओं को आगे आना चाहिए। मैं लंबे समय से सोच रहा था कि अब अपने परिवार के साथ समय बिताऊंगा।' उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वे अब कोई नया मामला नहीं लेंगे, चाहे वह कितना भी महत्वपूर्ण क्यों न हो। दवे ने समाज सेवा, पढ़ाई, यात्रा, गोल्फ खेलने और अपने परिवार के साथ समय बिताने की इच्छा व्यक्त की।
दुष्यंत दवे की पहचान
दुष्यंत दवे सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं। उन्होंने कई महत्वपूर्ण मामलों में पक्ष रखा है और मध्यस्थता के क्षेत्र में भी अपनी पहचान बनाई है। दवे तीन बार सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रह चुके हैं। उन्होंने चार दशकों में कई संवैधानिक और जनहित के मामलों में पैरवी की है।
कानूनी करियर की शुरुआत
दुष्यंत दवे का जन्म 27 अक्टूबर 1954 को हुआ। उन्होंने 1977 में गुजरात में अधिवक्ता के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। दवे का परिवार कानून के क्षेत्र से जुड़ा हुआ है, उनके पिता जस्टिस अरविंद दवे गुजरात हाई कोर्ट में न्यायाधीश थे। कई वर्षों तक गुजरात हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने के बाद, दवे 1990 के दशक में दिल्ली आए और जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में एक प्रमुख अधिवक्ता के रूप में अपनी पहचान बना ली।
दवे का सामाजिक योगदान
दवे ने गुजरात के बड़ौदा के पास एक तालुका को गोद लेने की योजना बनाई है और कृषि, आवास आदि के माध्यम से योगदान देने की इच्छा व्यक्त की है। वे दिल्ली में रहेंगे, लेकिन दिल्ली और बड़ौदा के बीच यात्रा करते रहेंगे।