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पंजाब यूनिवर्सिटी का एआई फेशियल रिकंस्ट्रक्शन मॉडल: फॉरेंसिक विज्ञान में नई क्रांति

पंजाब यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक एआई फेशियल रिकंस्ट्रक्शन मॉडल विकसित किया है, जो जबड़े और दांतों के आधार पर चेहरे की पहचान करने में 95% सटीकता प्रदान करता है। यह तकनीक फॉरेंसिक विज्ञान में एक महत्वपूर्ण कदम है और डिजास्टर विक्टिम आइडेंटिफिकेशन में भी सहायक हो सकती है। इस मॉडल का विकास प्रोफेसर केवल कृष्ण के नेतृत्व में किया गया है, जिसमें कई पीएचडी स्कॉलर्स ने योगदान दिया है। यह नवाचार न केवल अपराधों को सुलझाने में मदद करेगा, बल्कि मृतकों की पहचान में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
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पंजाब यूनिवर्सिटी का एआई फेशियल रिकंस्ट्रक्शन मॉडल: फॉरेंसिक विज्ञान में नई क्रांति

AI Facial Reconstruction Model: एक नई तकनीक

पंजाब यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक अद्वितीय एआई फेशियल रिकंस्ट्रक्शन मॉडल विकसित किया है, जो अब केवल विज्ञान कथा का हिस्सा नहीं है।


यह तकनीक जबड़े और दांतों के आधार पर किसी व्यक्ति का चेहरा 95% सटीकता के साथ पुनर्निर्माण कर सकती है।


यह नवाचार न केवल फॉरेंसिक विज्ञान में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि डिजास्टर विक्टिम आइडेंटिफिकेशन (DVI) में भी एक गेमचेंजर साबित हो सकता है।


पंजाब यूनिवर्सिटी की टीम का बायोमैट्रिक ब्रेकथ्रू

इस मॉडल के विकास में एंथ्रोपोलॉजी विभाग के प्रोफेसर केवल कृष्ण का नेतृत्व था, जिसमें फॉरेंसिक और डेंटल साइंस के विशेषज्ञ भी शामिल थे।


इस प्रोजेक्ट में छह पीएचडी स्कॉलर्स ने महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिनमें दामिनी सिवान, नंदिनी चितारा, अंकिता गुलेरिया, राकेश मीणा, आकांक्षा राणा और आयुषी श्रीवास्तव शामिल हैं।


इस एआई मॉडल को भारत सरकार के कॉपीराइट ऑफिस से अधिकार मिल चुका है, जो इसे आधिकारिक रूप से सुरक्षित और मान्यता प्राप्त बनाता है।


कैसे काम करेगा यह मॉडल आपदाओं में?

ऐसे हादसों में जहां शव बुरी तरह क्षत-विक्षत हो जाते हैं, जैसे विमान दुर्घटनाएं या बम विस्फोट, चेहरे की पहचान करना मुश्किल होता है।


हालांकि, जबड़ा और दांत अक्सर सुरक्षित रहते हैं।


इस एआई टूल के माध्यम से, जबड़े और दांत की संरचना से पूरे चेहरे की डिजिटल छवि बनाई जा सकती है, जो वास्तविक चेहरे से 95% मेल खाती है।


इसका मतलब है कि बिना किसी गवाह या फोटो के भी, फॉरेंसिक वैज्ञानिक शव की पहचान कर सकते हैं।


फॉरेंसिक रिसर्च में एआई का योगदान

इस प्रोजेक्ट का एक हिस्सा दामिनी सिवान और डॉ. नंदिनी चितारा के शोध कार्य से संबंधित है।


दामिनी, जो IFSC से फॉरेंसिक साइंटिस्ट हैं, एआई का उपयोग फॉरेंसिक केसवर्क, रिसर्च और एथिक्स में कर रही हैं।


डॉ. नंदिनी चितारा, जिन्हें हाल ही में पीएचडी मिली है, वर्तमान में रीजनल फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी, पंचकूला में सीनियर साइंटिफिक असिस्टेंट (बायोलॉजी) के रूप में कार्यरत हैं।


यह रिसर्च फॉरेंसिक एंथ्रोपोलॉजिस्ट्स को उन मामलों में मदद करेगी जहां शव सड़ चुके हों या टुकड़ों में हों।


भविष्य की पहचान तकनीक

जब एआई हर क्षेत्र में प्रवेश कर रहा है, यह नवाचार दर्शाता है कि भारत के संस्थान भी वैश्विक नवाचार की दौड़ में पीछे नहीं हैं।


चेहरे की पुनर्निर्माण तकनीक के माध्यम से न केवल अपराधों को सुलझाया जा सकता है, बल्कि मृतकों की पहचान कर उनके परिवारों को भी शांति मिल सकती है।


यह रिसर्च अब राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फॉरेंसिक विभागों के लिए एक आदर्श बन सकती है।


पंजाब यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित एआई फेशियल रिकंस्ट्रक्शन मॉडल ने फॉरेंसिक विज्ञान, डिजास्टर विक्टिम आइडेंटिफिकेशन और अपराध सुलझाने में एक नया युग शुरू किया है।