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भारत की रूस से तेल खरीद पर अमेरिकी दबाव: संभावित आर्थिक प्रभाव

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की चेतावनी के बाद, भारत को रूस से तेल खरीदने पर गंभीर आर्थिक परिणामों का सामना करना पड़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भारत ने रूस से तेल खरीदना बंद किया, तो उसका वार्षिक आयात बिल 9 से 11 अरब डॉलर तक बढ़ सकता है। रूस, कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है और भारत ने हाल के वर्षों में रूस से तेल आयात में वृद्धि की है। इस लेख में हम इस स्थिति के संभावित आर्थिक प्रभावों और भारत के लिए इसके दीर्घकालिक परिणामों पर चर्चा करेंगे।
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भारत की रूस से तेल खरीद पर अमेरिकी दबाव: संभावित आर्थिक प्रभाव

भारत को रूस से तेल खरीदने पर अमेरिकी चेतावनी



  • आयात बिल में 11 अरब डॉलर तक की वृद्धि संभव


विशेषज्ञों का कहना है कि यदि भारत रूस से तेल खरीदना बंद करता है, तो उसे आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस स्थिति में भारत का वार्षिक तेल आयात बिल 9 से 11 अरब डॉलर तक बढ़ सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को चेतावनी दी है कि यदि वह रूस से तेल खरीदना जारी रखता है, तो उस पर आर्थिक दंड लगाया जा सकता है।


रूस का कच्चे तेल का उत्पादन

रूस कच्चे तेल का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक


रूस, कच्चे तेल के उत्पादन में विश्व में दूसरे स्थान पर है और यह निर्यात में भी दूसरे स्थान पर है। रूस प्रतिदिन लगभग 9.5 मिलियन बैरल कच्चे तेल का उत्पादन करता है, जो वैश्विक मांग का 10 प्रतिशत है। इसके अलावा, रूस हर दिन 2.3 मिलियन बैरल परिष्कृत उत्पादों का निर्यात करता है।


रूस-यूक्रेन युद्ध का प्रभाव

रूस-यूक्रेन युद्ध का तीसरा वर्ष


यह ध्यान देने योग्य है कि रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध का तीसरा वर्ष चल रहा है। 2022 में युद्ध शुरू होने पर यह अनुमान लगाया गया था कि रूसी तेल बाजार से बाहर हो सकता है, जिससे वैश्विक तेल की कीमतों में वृद्धि हो सकती है। हालांकि, भारत ने इस स्थिति का लाभ उठाया है। जब यूरोपीय बाजारों ने रूस के तेल के लिए अपने दरवाजे बंद कर दिए, तब भारत ने समुद्री निर्यात में वृद्धि की।


भारत में रूस के तेल का बढ़ता हिस्सा

रूस का कच्चे तेल के आयात में बढ़ता योगदान


सूत्रों के अनुसार, फरवरी 2022 में भारत के कच्चे तेल के आयात में रूस की हिस्सेदारी केवल 0.2 प्रतिशत थी, जो अब बढ़कर 35-40 प्रतिशत हो गई है। इससे भारत को खुदरा ईंधन की कीमतों और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद मिल रही है। भारतीय तेल कंपनियां कुछ तेल का रिफाइनिंग करती हैं और बाकी को डीजल और अन्य उत्पादों के रूप में निर्यात करती हैं।