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भारत में ई-कचरे से क्रिटिकल मिनरल्स निकालने की नई योजना

केंद्र सरकार ने ई-कचरे, पुरानी बैटरियों और वाहनों के पुर्जों से 'क्रिटिकल मिनरल्स' निकालने के लिए 1,500 करोड़ रुपये की योजना को मंजूरी दी है। यह योजना भारत को इन महत्वपूर्ण खनिजों में आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से बनाई गई है। जानें इस योजना के तहत क्या लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं और यह कैसे देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकता है।
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भारत में ई-कचरे से क्रिटिकल मिनरल्स निकालने की नई योजना

सरकार की नई पहल

भारत में पुराने इलेक्ट्रॉनिक्स, लैपटॉप और खराब बैटरियों को अब केवल कचरा नहीं माना जाएगा, बल्कि ये देश के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन बन सकते हैं। केंद्र सरकार ने ई-कचरे, पुरानी बैटरियों और वाहनों के पुर्जों से 'क्रिटिकल मिनरल्स' निकालने के लिए 1,500 करोड़ रुपये की प्रोत्साहन योजना को मंजूरी दी है। यह योजना नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन (NCMM) का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य भारत को इन महत्वपूर्ण खनिजों के मामले में आत्मनिर्भर बनाना है.


क्यों हैं ये 'क्रिटिकल मिनरल्स' महत्वपूर्ण? इन्हें 21वीं सदी का नया 'तेल' कहा जा रहा है। ये दुर्लभ खनिज हैं जो किसी भी देश की आधुनिक अर्थव्यवस्था और सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। लिथियम, कोबाल्ट, निकल और अन्य दुर्लभ खनिज इसी श्रेणी में आते हैं, जिनका उपयोग इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरी, रक्षा प्रणालियों और आधुनिक तकनीक में किया जाता है.


भारत ने 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए 'क्रिटिकल मिनरल्स' की आपूर्ति सुनिश्चित करना आवश्यक है। इसी को ध्यान में रखते हुए, सरकार ने जनवरी 2025 में 7 साल (2024-31) के लिए नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन (NCMM) की शुरुआत की थी, जिसमें 16,300 करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा.


इस नई रीसाइक्लिंग योजना का उद्देश्य है: हर साल 2.7 लाख टन रीसाइक्लिंग क्षमता विकसित करना, 40 हजार टन क्रिटिकल मिनरल्स का उत्पादन करना, लगभग 8,000 करोड़ रुपये का निवेश आकर्षित करना और करीब 70,000 नौकरियों का सृजन करना. यह केवल एक खनन कार्यक्रम नहीं है, बल्कि ऊर्जा सुरक्षा, औद्योगिक विकास और तकनीकी स्वतंत्रता प्राप्त करने का एक रणनीतिक खाका है.