भारत में कफ सिरप और अस्पतालों में अग्निकांड: सुरक्षा की कमी का गंभीर मुद्दा

कफ सिरप से मौतों का सिलसिला
हाल के वर्षों में कफ सिरप से जुड़ी मौतों की घटनाएं लगातार सुर्खियों में रही हैं। इसी तरह, अस्पतालों में आग लगने की घटनाएं भी बढ़ती जा रही हैं। इन घटनाओं में एक समान समस्या नियामक संस्थाओं की लापरवाही है।
जयपुर का अग्निकांड और उसकी गंभीरता
जयपुर के सवाई मान सिंह अस्पताल में हुई अग्निकांड ने देश में निरीक्षण और निगरानी की कमजोरियों को फिर से उजागर किया है। यह घटना उस समय हुई है जब कई राज्यों में कफ सिरप के सेवन से बच्चों की मौत की खबरें आई हैं। ये मौतें इस बात का संकेत हैं कि दवा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने में देश में पर्याप्त प्रयास नहीं हो रहे हैं। उल्लेखनीय है कि जिस अस्पताल में अग्निकांड हुआ, वह सरकारी है, जबकि तमिलनाडु की कंपनी ने कोल्ड्रिफ नामक कफ सिरप का निर्माण किया है, जो प्राइवेट क्षेत्र की है। इसका मतलब यह है कि चाहे क्षेत्र कोई भी हो, ऐसे मामलों में लापरवाही जारी है, जो सीधे मानव जीवन से जुड़ी है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की प्रतिक्रिया
कोल्ड्रिफ सिरप से मौतों की खबरों के तुरंत बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस सिरप में डाइथीलीन ग्लाइकोल की मौजूदगी का खंडन किया। लेकिन जब राजस्थान और मध्य प्रदेश में बेचे गए सिरप के नमूनों की जांच की गई, तो इस हानिकारक तत्व की पुष्टि हुई। यह स्थिति क्या दर्शाती है? यह दर्शाता है कि अधिकारियों की प्राथमिकता गंभीर मामलों को दबाने की होती है। ऐसे दृष्टिकोण से मिलावट और गुणवत्ता से समझौता करने वाले व्यापारियों का मनोबल बढ़ता है।
सुरक्षा की आवश्यकता
ऐसी घटनाएं इतनी बढ़ गई हैं कि इन्हें मानवीय भूल या चूक के रूप में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। भारतीय कफ सिरप से कई देशों में मौतों की घटनाएं भी सामने आई हैं। अस्पतालों में आग लगने की घटनाएं भी बढ़ती जा रही हैं। इन सभी घटनाओं को अलग-अलग नहीं देखा जाना चाहिए। इन सबका एक समान पहलू है - नियामक संस्थाओं की लापरवाही। इसे तुरंत सुधारने की आवश्यकता है। नियमों का पालन सुनिश्चित करने के लिए सख्त कदम उठाने की जरूरत है, अन्यथा देश में किसी की जिंदगी सुरक्षित नहीं रह पाएगी।