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राज्यों के वित्तीय संकट का समाधान: 16वें वित्त आयोग की सिफारिशें

16वें वित्त आयोग की सिफारिशें राज्यों के वित्तीय संकट को हल करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। पनगढ़िया ने बताया कि 28 में से 22 राज्यों ने केंद्र द्वारा वसूले जाने वाले करों में अपने हिस्से को बढ़ाने की मांग की है। जीएसटी और कोरोना महामारी के कारण राज्यों की वित्तीय स्थिति बिगड़ गई है। जानें कैसे केंद्र का कर हिस्सा बढ़ाने की मांग की जा रही है और इससे राज्यों को क्या लाभ होगा।
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राज्यों के वित्तीय संकट का समाधान: 16वें वित्त आयोग की सिफारिशें

16वें वित्त आयोग की सिफारिशें

अरविंद पनगढ़िया की अगुवाई में 16वां वित्त आयोग अपनी सिफारिशें तैयार कर रहा है। पनगढ़िया ने बताया कि देश के 28 राज्यों में से 22 ने केंद्र द्वारा वसूले जाने वाले करों में अपने हिस्से को बढ़ाने की मांग की है। उल्लेखनीय है कि 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार राज्यों का हिस्सा 41 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया था। इसका मतलब यह है कि यदि केंद्र सरकार 100 रुपये कर के रूप में वसूलती है, तो राज्यों को 41 रुपये मिलते हैं, जबकि 59 रुपये केंद्र के पास रहते हैं। प्रारंभ में राज्यों को इस व्यवस्था में कोई समस्या नहीं थी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में, विशेषकर कोरोना महामारी के बाद, उनकी वित्तीय स्थिति बिगड़ गई है।


राज्यों की समस्याएं जीएसटी के कारण भी बढ़ी हैं। राज्य सरकारें जीएसटी पर सहमत हुई थीं क्योंकि केंद्र ने वादा किया था कि उनका कर संग्रह हर साल 14 प्रतिशत की दर से बढ़ेगा, और यदि ऐसा नहीं होता है, तो केंद्र सरकार उन्हें मुआवजा देगी। यह मुआवजा जुलाई 2022 में समाप्त हो गया। इस दौरान, कोरोना के कारण कई वित्तीय वर्ष प्रभावित हुए, जिससे राज्यों का राजस्व घटा। केंद्र ने केवल कर्ज की गारंटी दी, लेकिन कर का हिस्सा नहीं बढ़ाया।


जीएसटी से उत्पन्न समस्याएं अलग हैं। कोरोना के दौरान केंद्र सरकार ने कई सेस और सरचार्ज लागू किए। जब सरकार सेस या सरचार्ज लगाती है, तो उसका पूरा लाभ केंद्र को मिलता है, राज्यों को नहीं। केंद्र ने अपने राजस्व को बढ़ाने के लिए सेस और सरचार्ज बढ़ाए, जिससे राज्यों की कर आय में कमी आई। एक आकलन के अनुसार, राज्यों को केंद्र सरकार के वसूले गए करों में से 41 प्रतिशत मिलने का दावा किया गया है, लेकिन वास्तव में उनका हिस्सा घटकर 31 प्रतिशत रह गया है।


यह भी ध्यान देने योग्य है कि जीएसटी के तहत राज्यों के पास अपने राजस्व को बढ़ाने के सीमित विकल्प हैं। वे केवल शराब और पेट्रोलियम उत्पादों पर कर बढ़ा सकते हैं, लेकिन इससे उनकी लोकप्रियता पर असर पड़ सकता है। अधिकांश राज्यों ने पहले ही पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ा दी हैं। इस प्रकार, राज्य सरकारें अपने राजस्व को बढ़ाने में असमर्थ हैं और केंद्र पर उनकी निर्भरता बढ़ती जा रही है।


इसलिए, राज्यों की वित्तीय स्थिति को सुधारने का एक तरीका यह है कि केंद्रीय करों में राज्यों का हिस्सा बढ़ाया जाए। पनगढ़िया ने कहा है कि 28 में से 22 राज्यों ने अपने हिस्से को 41 से बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने की मांग की है। यह समस्या केवल विपक्षी राज्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि भाजपा शासित राज्यों पर भी इसका प्रभाव पड़ा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सहकारी संघवाद को साकार करने के लिए राज्यों के कर हिस्से को बढ़ाना होगा।


केंद्र सरकार के खर्च में भी लगातार वृद्धि हो रही है, विशेषकर रक्षा और बुनियादी ढांचे के क्षेत्रों में। इसलिए, वित्त आयोग को एक संतुलित समाधान निकालना होगा। यदि राज्यों का हिस्सा 41 से बढ़ाकर 45 प्रतिशत किया जाता है, तो यह एक महत्वपूर्ण कदम होगा। इसके साथ ही, वित्त आयोग को केंद्र सरकार को सेस और सरचार्ज लगाने से रोकने के लिए सख्त नीतिगत अनुशंसा करनी चाहिए।