साध्वी प्रज्ञा को मिली राहत: मालेगांव ब्लास्ट मामले में सभी आरोपों से बरी
साध्वी प्रज्ञा का संघर्ष और हालिया फैसला
हाल ही में, एनआईए की अदालत ने मालेगांव ब्लास्ट मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और अन्य सात आरोपियों को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया। यह निर्णय प्रज्ञा के लिए एक नई शुरुआत का प्रतीक है, जिन्होंने न केवल आतंकवाद के आरोपों का सामना किया, बल्कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से भी जूझा।प्रज्ञा, जो हिंदुत्ववादी विचारों की समर्थक हैं, का जन्म 2 फरवरी 1970 को मध्य प्रदेश के भिंड जिले में हुआ था। बचपन से ही वे साहसी और तेज-तर्रार थीं, जो अपने भाई-बहनों के साथ मिलकर मनचलों को सबक सिखाने के लिए सड़कों पर निकलती थीं। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से की और बाद में विश्व हिंदू परिषद की दुर्गा वाहिनी में शामिल हुईं।
प्रज्ञा के पिता, चंद्रपपाल सिंह, भिंड में एक प्रतिष्ठित आयुर्वेदाचार्य थे और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े थे। उन्होंने एमजेएस कॉलेज से एमए की डिग्री प्राप्त की और भोपाल के विद्यानिकेतन कॉलेज ऑफ फिजिकल एजुकेशन से बीपीएड किया। 2002 में, उन्होंने 'जय वंदे मातरम जन कल्याण समिति' की स्थापना की, जिसका उद्देश्य सामाजिक कार्यों के साथ-साथ उन लड़कियों की मदद करना था जो दूसरे समुदाय के लड़कों के साथ भाग जाती थीं।
29 सितंबर 2008 को मालेगांव में हुए विस्फोट ने प्रज्ञा की जिंदगी को पूरी तरह बदल दिया। इस विस्फोट में छह लोगों की मौत हुई और कई लोग घायल हुए। प्रज्ञा सहित सात लोगों को महाराष्ट्र एटीएस ने गिरफ्तार किया, आरोप था कि विस्फोट में इस्तेमाल मोटरसाइकिल उनके नाम पर पंजीकृत थी। हालांकि, 17 साल की लंबी जांच के बाद, एनआईए की अदालत ने सबूतों के अभाव में उन्हें बरी कर दिया।
2017 में बॉम्बे हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद, प्रज्ञा ने 2019 में भाजपा ज्वाइन की और भोपाल से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचीं। उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज दिग्विजय सिंह को हराकर अपनी राजनीतिक स्थिति मजबूत की। हालांकि, 2024 के चुनाव में उन्हें पार्टी का टिकट नहीं मिला। प्रज्ञा के विवादित बयानों ने भी उन्हें सुर्खियों में रखा, खासकर जब उन्होंने महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देशभक्त कहा।