शादी के बाद हनीमून: भारतीय संस्कृति और विज्ञान का दृष्टिकोण

शादी के बाद शारीरिक और भावनात्मक समायोजन
शादी के बाद शारीरिक और भावनात्मक समायोजन: आजकल, शादी से पहले ही कई कपल हनीमून की योजना बना लेते हैं। ऐसा लगता है कि शादी के तुरंत बाद हनीमून पर जाना एक चलन बन गया है। कई जोड़े विवाह की तारीख तय करने से पहले ही अपनी हनीमून डेस्टिनेशन, टिकट और होटल की बुकिंग कर लेते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भारतीय संस्कृति में इस पर क्या कहा गया है? हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, दूल्हा-दुल्हन को शादी के कम से कम 45 दिन बाद किसी यात्रा या हनीमून पर जाना चाहिए। इसके पीछे धार्मिक, मानसिक, शारीरिक और ज्योतिषीय कारण हैं।
विज्ञान का दृष्टिकोण
शास्त्रों में इस अवधि को "ऋतु शुद्धि", "गृहस्थ व्रत" और "गर्भ संयम" कहा गया है, जबकि आधुनिक भाषा में इसे "पोस्ट मैरिटल फिजिकल एंड इमोशनल एडजस्टमेंट" कहा जाता है। इसका अर्थ है कि नई दुल्हन को विवाह के बाद अपने शरीर, मन और नए रिश्तों के साथ तालमेल बनाने का समय मिलना चाहिए। विज्ञान के अनुसार, विवाह के तुरंत बाद महिलाओं के हार्मोनल और मानसिक बदलाव चरम पर होते हैं। ऐसे में उन्हें न केवल शारीरिक आराम की आवश्यकता होती है, बल्कि भावनात्मक स्थिरता और पारिवारिक माहौल में ढलने के लिए भी समय चाहिए।
शास्त्रों में वर्णित बातें
इस प्रक्रिया को शास्त्रों में "योनिक संयोजन" कहा गया है, जो तीन चरणों में विभाजित है। पहले 7 दिन पूर्ण विश्राम और स्थिरता के लिए होते हैं। इसके बाद 8 से 21 दिन मानसिक और भावनात्मक अनुकूलन के लिए होते हैं। अंतिम चरण, यानी 22 से 45 दिन, ऊर्जा संतुलन, ग्रह दशाओं के प्रभाव से सामंजस्य और रिश्तों की गहराई को समझने के लिए उपयुक्त माने गए हैं। यह परंपरा अंधविश्वास नहीं है, बल्कि नए वैवाहिक जीवन की नींव मजबूत करने का एक वैज्ञानिक और आध्यात्मिक तरीका है। इसलिए, यदि आप शादी के बाद खुशहाल गृहस्थ जीवन की कामना करते हैं, तो 45 दिन बाद हनीमून पर जाना एक विचारणीय और लाभकारी निर्णय हो सकता है।