अहमदाबाद विमान हादसे पर मीडिया की संवेदनहीनता

सोशल मीडिया और मुख्यधारा मीडिया की भूमिका
इस समय किसी भी प्रकार की रस्साकशी का स्थान नहीं है। सोशल मीडिया के अराजक मंच और मुख्यधारा मीडिया की स्वेच्छाचारी प्रवृत्तियाँ हमारी संवेदनाओं को कृत्रिम रूप से उत्तेजित कर रही हैं, जिससे वे कमजोर हो जाती हैं। हर घटना उनके लिए एक रंगमंचीय प्रस्तुति बन गई है। वे इसे अपने अनुसार प्रस्तुत करने में लगे हैं, जैसे कि यह पत्रकारिता का सही रूप है।
अहमदाबाद विमान हादसा
अहमदाबाद में हुआ विमान हादसा पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। यह एक गंभीर त्रासदी है, जो आधुनिक तकनीक और मानव कौशल की असहायता का एक दुखद उदाहरण है। इस घटना में 265 लोगों की जान गई है, और इसके कारणों पर चर्चा जारी है। क्या यह बोइंग 787-8 के डिज़ाइन में कोई खामी थी, या उड़ान संचालन में कोई चूक हुई, या फिर कोई अनजानी साजिश थी? इसकी पूरी जानकारी जांच के बाद ही सामने आएगी।
भारतवासियों की संवेदनशीलता
भारत के लोग सुख-दुख में समान रहने की अद्भुत क्षमता रखते हैं। वे हमेशा अपने ज्ञान का भंडार लेकर चलते हैं और अवसर मिलते ही अपनी विश्लेषणात्मक प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं। सूचना के इस युग में, स्व-नियुक्त विशेषज्ञों की भरमार हो गई है, जो वर्षों के अध्ययन के बाद भी अपने ज्ञान को साझा करने में लगे हैं।
त्रासदियों का प्रभाव
त्रासदियाँ अचानक आती हैं और लोगों को स्तब्ध कर देती हैं। अहमदाबाद का हालिया हादसा 27 साल पहले की एक विमान दुर्घटना की याद दिलाता है। 1988 में भी एक विमान उड़ान भरते समय दुर्घटनाग्रस्त हुआ था, जिसमें 135 लोग मारे गए थे। इस नए हादसे ने पुरानी यादों को फिर से ताजा कर दिया है।
राजनीतिक नेताओं की जिम्मेदारी
इस हादसे के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वहां जाना आवश्यक था। यह केवल उनके लिए नहीं, बल्कि अन्य नेताओं के लिए भी महत्वपूर्ण है। ऐसे मौकों पर व्यक्तिगत उपस्थिति संवेदनाओं की साझेदारी का प्रतीक होती है। इसलिए, इस समय सवाल उठाना उचित नहीं है कि अन्य घटनाओं में उनकी अनुपस्थिति क्यों रही।
सवाल उठाने का सही समय
हर समय सवाल उठाना सही नहीं होता। सवालों का महत्व तब बढ़ता है जब उन्हें सही समय और तरीके से उठाया जाए। भारत में हर साल 11 लाख से अधिक उड़ानें संचालित होती हैं, और विमान दुर्घटनाओं की दर अन्य देशों की तुलना में कम है।
समर्पण और संवेदनशीलता का समय
यह समय उन लोगों के लिए प्रार्थना करने का है, जिन्होंने इस त्रासदी में अपनी जान गंवाई। हमें इस समय किसी भी प्रकार की रस्साकशी से बचना चाहिए। सोशल मीडिया और मुख्यधारा मीडिया की भूमिका इस समय संवेदनाओं को कमजोर करने की है।