आंवला नवमी की पौराणिक कथा: संतान सुख की प्राप्ति का उपाय
आंवला नवमी व्रत कथा: काशी के वैश्य की दुखद कहानी
नई दिल्ली, 29 अक्टूबर, 2025: अक्षय नवमी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है, इसलिए इसे आंवला नवमी भी कहा जाता है। आज हम आपको इसकी पौराणिक कथा सुनाएंगे, जो पाप से मुक्ति और संतान सुख की कहानी है।
काशी के वैश्य की संतान की चाह
काशी में एक धार्मिक वैश्य रहते थे। उनके पास धन की कोई कमी नहीं थी, लेकिन संतान न होने के कारण वे हमेशा दुखी रहते थे। एक दिन उनकी पत्नी की पड़ोसन ने कहा, 'यदि तुम्हें पुत्र चाहिए, तो मेरे पास एक उपाय है। किसी पराए बच्चे की बलि भैरव भगवान को चढ़ाओ।'
पत्नी का लालच और पाप
वैश्य ने इस सुझाव को ठुकरा दिया। लेकिन पत्नी की संतान की इच्छा इतनी प्रबल थी कि वह लालच में आ गई। एक दिन उसने एक मासूम कन्या को कुएं में धक्का देकर भैरव को बलि चढ़ा दिया।
पाप का परिणाम
इस पाप का परिणाम भयानक था। वैश्य की पत्नी को पूरे शरीर में कोढ़ हो गया और उस लड़की की आत्मा उसे परेशान करने लगी। जब वैश्य ने पूछा, तो पत्नी ने सच्चाई बता दी। वैश्य ने कहा, 'गोवध, ब्राह्मण हत्या और बाल वध सबसे बड़े पाप हैं। इससे कोई सुखी नहीं होता। गंगा तट पर जाओ, भगवान का भजन करो और सच्चे मन से स्नान करो।'
गंगा मां की शरण और उपाय
पत्नी ने पछताते हुए गंगा मां की शरण ली। मां गंगा ने कहा, 'कार्तिक शुक्ल नवमी को आंवले के पेड़ की पूजा करो और आंवला खाओ।' महिला ने वैसा ही किया।
चमत्कार का अनुभव
इस व्रत और पूजा के प्रभाव से महिला का कोढ़ ठीक हो गया। कुछ समय बाद उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति भी हुई। यही है आंवला नवमी की महिमा।
