उच्च रक्तचाप: आयुर्वेदिक उपायों से करें नियंत्रण

उच्च रक्तचाप की बढ़ती समस्या
नई दिल्ली: आधुनिक जीवनशैली और खानपान के कारण मानव शरीर कई बीमारियों का शिकार हो रहा है। अब युवा उम्र में ही वृद्धावस्था की बीमारियों का सामना कर रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में देश के 30 प्रतिशत युवा उच्च रक्तचाप की समस्या से प्रभावित हैं। कुछ लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते, जबकि अन्य को इसके बारे में जानकारी नहीं होती कि यह कैसे एक 'साइलेंट किलर' के रूप में कार्य करता है और शरीर को अंदर से कमजोर कर देता है।
आयुर्वेद में उच्च रक्तचाप का दृष्टिकोण
आयुर्वेद के अनुसार, उच्च रक्तचाप को वात दोष के असंतुलन के रूप में देखा जाता है। जब शरीर में वात दोष की मात्रा बढ़ जाती है, तो यह समस्या धीरे-धीरे विकसित होती है। इसके लक्षणों में बेचैनी, घबराहट और सिरदर्द शामिल हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, क्योंकि ये पूरे शरीर को प्रभावित कर सकते हैं। उच्च रक्तचाप से ब्रेन हेमरेज, किडनी फेलियर, दृष्टिहीनता, नाक से खून बहना और हार्ट अटैक जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए रक्तचाप को सामान्य रखना अत्यंत आवश्यक है।
उच्च रक्तचाप के आयुर्वेदिक उपचार
आयुर्वेद में उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने के लिए कई उपाय सुझाए गए हैं। लौकी और तुलसी का जूस इस समस्या को नियंत्रित करने में मददगार होता है। सुबह खाली पेट आधा कप लौकी का जूस और पांच तुलसी की पत्तियां मिलाकर सेवन करें। यह कफ और वात दोष को संतुलित करता है और दिल व पेट को ठंडक प्रदान करता है।
सर्पगंधा की जड़ भी उच्च रक्तचाप में लाभकारी होती है। इसे रात में भिगोकर सुबह उबालकर पीना चाहिए। बाजार में उपलब्ध चूर्ण का भी उपयोग किया जा सकता है। यह उच्च रक्तचाप की वृद्धि को नियंत्रित करता है। आंवला और शहद का सेवन भी फायदेमंद है। रोज सुबह एक चम्मच आंवले का चूर्ण शहद के साथ लें, यह दिल को मजबूत बनाता है।
तनाव और जीवनशैली में बदलाव
इसके अलावा, शोधन क्रिया भी की जा सकती है, जो शरीर की गंदगी को बाहर निकालने में मदद करती है और कई बीमारियों से बचाती है। उच्च रक्तचाप की समस्या में तनाव से बचना चाहिए और सिगरेट, शराब और कैफीन का सेवन नहीं करना चाहिए। पर्याप्त नींद लेना भी आवश्यक है।