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उत्तर प्रदेश में बिजली कंपनियों के निजीकरण पर उठे सवाल, आयोग ने मांगी रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश में बिजली कंपनियों के निजीकरण के खिलाफ उपभोक्ता परिषद ने कई गंभीर आरोप लगाए हैं। परिषद ने 33,122 करोड़ रुपये के सरप्लस और बिजली दरों में कमी की मांग की है। विद्युत नियामक आयोग ने इन आरोपों पर रिपोर्ट तलब की है। यह मामला अब रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के तहत टैरिफ का हिस्सा बन चुका है, जिससे निजीकरण की प्रक्रिया पर सवाल उठ रहे हैं।
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उत्तर प्रदेश में बिजली कंपनियों के निजीकरण पर उठे सवाल, आयोग ने मांगी रिपोर्ट

बिजली कंपनियों में भ्रष्टाचार के आरोप

उत्तर प्रदेश की सभी बिजली कंपनियों में उपभोक्ताओं का 33,122 करोड़ रुपये का सरप्लस सामने आया है। इसके बदले में बिजली की दरों में एक बार में 45 प्रतिशत की कमी या अगले पांच वर्षों में 9 प्रतिशत की कमी की मांग की गई है। इसके साथ ही 42 जिलों में निजीकरण के दौरान बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए गए हैं। इन मुद्दों को लेकर बिजली दरों की सुनवाई में जोरदार आपत्तियां दर्ज की गई हैं। विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 64(3) के अनुसार, बिना जवाब के बिजली दरों का निर्धारण आगे नहीं बढ़ाया जा सकता।


उपभोक्ता परिषद की आपत्तियां

उपभोक्ता परिषद ने दक्षिणांचल और पूर्वांचल में निजीकरण के मुद्दे पर कई कमियों को उजागर किया है। परिषद ने विद्युत अधिनियम 2003 के गलत उपयोग का भी मुद्दा उठाया और बिजली दरों में वृद्धि को असंवैधानिक बताया। उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग ने उपभोक्ता परिषद की सभी आपत्तियों पर रिपोर्ट तलब की है। सभी बिजली कंपनियों के प्रबंध निदेशकों को इन आपत्तियों का जवाब देने का निर्देश दिया गया है।


भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच

उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि बिजली दरों में कमी और निजीकरण के प्रस्ताव में भ्रष्टाचार के आरोपों के आधार पर सभी कंपनियों को लिखित जवाब देना होगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि पूर्वांचल और दक्षिणांचल क्षेत्र, जो पहले निजीकरण पर चुप थे, अब क्या जवाब देते हैं। उन्होंने कहा कि यह मामला अब रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के तहत टैरिफ का हिस्सा बन चुका है, और निजीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना पूरी तरह से असंवैधानिक होगा।


आयोग की भूमिका

उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष ने कहा कि विद्युत नियामक आयोग को बिजली कंपनियों से सही जवाब लेना होगा और इसे आम जनता के सामने लाना होगा। उन्होंने कहा कि निजीकरण का पूरा मसौदा भ्रष्टाचार से भरा हुआ है, और इसकी उच्च स्तरीय जांच आवश्यक है। यदि कोई चूक होती है, तो विद्युत नियामक आयोग को न्यायालय में इसका जवाब देना पड़ेगा।