कुरुक्षेत्र: गीता महोत्सव 2025 का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
कुरुक्षेत्र का ऐतिहासिक महत्व
कुरुक्षेत्र (गीता महोत्सव 2025)। सरस्वती और दृष्दवती नदियों के संगम पर स्थित यह पवित्र भूमि न केवल ब्रह्मा की उत्तरवेदी है, बल्कि वैदिक सभ्यता का एक महत्वपूर्ण केंद्र भी मानी जाती है। यहां के तीर्थों और घाटों पर ऋषियों ने वैदिक साहित्य का निर्माण और संग्रह किया। यह तीर्थराज कुरुक्षेत्र है, जिसका उल्लेख स्कंद पुराण, वामन पुराण, मार्कंडेय पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण जैसे ग्रंथों में मिलता है।
वामन पुराण में कहा गया है कि चाहे मनुष्य किसी भी अवस्था में हो, यदि वह कुरुक्षेत्र का स्मरण करता है, तो वह पवित्र हो जाता है। महाभारत में भी उल्लेख है कि जो व्यक्ति कुरुक्षेत्र जाने और वहां निवास करने की बात करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
गीता का शाश्वत संदेश देने वाली यह भूमि केवल एक तीर्थ स्थल नहीं, बल्कि सर्वोत्तम तीर्थ स्थल मानी जाती है। कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के अनुसार, यहां का धूल का कण भी किसी महापापी को छू जाए तो वह परम गति को प्राप्त कर लेता है।
यहां आज भी कई ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के पुरातात्विक स्थल हैं, जिनके उत्खनन से इस भूमि की विभिन्न संस्कृतियों का पता चलता है। कहा जाता है कि ब्रह्मा ने यहीं से मानव जाति की रचना की थी।
कुरुक्षेत्र की महत्ता: स्वामी ज्ञानानंद के विचार
स्वामी ज्ञानानंद का दृष्टिकोण
गीता के ज्ञाता स्वामी ज्ञानानंद बताते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस भूमि से मानवता को मार्गदर्शन देने वाला शाश्वत संदेश दिया। यह स्थान धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। महाभारत और अन्य पौराणिक ग्रंथों में कुरुक्षेत्र की महत्ता का उल्लेख है, जिससे इसकी सार्थकता का अंदाजा लगाया जा सकता है। महाभारत के अनुसार, पृथ्वी के निवासियों के लिए नैमिष, अंतरिक्षवासियों के लिए पुष्कर और तीनों लोकों के निवासियों के लिए कुरुक्षेत्र विशेष तीर्थ स्थल है।
गीता महोत्सव: ग्रंथों में कुरुक्षेत्र का उल्लेख
महाभारत में कुरुक्षेत्र का स्थान
महाभारत: सरस्वती के दक्षिण और दृष्दवती के उत्तर में जो कुरुक्षेत्र में निवास करते हैं, वे स्वर्ग में निवास करते हैं। पृथ्वी पर तीन लोकों में कुरुक्षेत्र सर्वोत्तम तीर्थ है।
वामन पुराण: ग्रह, नक्षत्र और तारों के पतन का भय तो होता है, लेकिन कुरुक्षेत्र में मरने वालों का कभी पतन नहीं होता।
मार्कंडेय और सरस्वती के अनुसार, मार्कंडेय ऋषि ने सरस्वती की स्तुति की है।
मार्कंडेय पुराण: सरस्वती नदी के किनारे स्थित कुरुक्षेत्र के कई तीर्थों की महिमा का वर्णन है, जैसे पिहोवा और अन्य स्थान। यहां ब्रह्मा ने मानव जाति की रचना की और तपस्या की थी।
