कृषि अपशिष्टों से ग्रीन हाइड्रोजन और बायो-सीएनजी का उत्पादन

पुणे के शोधकर्ताओं की नई खोज
एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी, पुणे के शोधकर्ताओं ने एक नई कार्बन-निगेटिव प्रक्रिया विकसित की है। इस प्रक्रिया के माध्यम से मिश्रित कृषि अपशिष्टों से बायो-सीएनजी और ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन संभव हो गया है। ग्रीन हाइड्रोजन अनुसंधान केंद्र के अनुसार, यह तकनीक ऊर्जा स्वतंत्रता का एक स्वच्छ और किफायती विकल्प प्रदान करती है।
राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के अनुरूप
इस प्रक्रिया को राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के लक्ष्यों के अनुरूप विकसित किया गया है, जिसका उद्देश्य 2030 तक सालाना 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करना है।
कृषि अपशिष्टों का उपयोग
डॉ। रत्नदीप जोशी, जो इस शोध के सह-निदेशक हैं, ने बताया कि यह प्रक्रिया धान के भूसे या नेपियर घास जैसे एकल फीडस्टॉक पर निर्भर नहीं है। इसके बजाय, यह मिश्रित कृषि अपशिष्टों का उपयोग करती है, जिसमें बाजरा कचरा और अन्य मौसमी फसल अवशेष शामिल हैं।
यह तकनीक कम वर्षा और सूखे वाले क्षेत्रों में विशेष रूप से प्रभावी है। बायोमास-से-गैस रूपांतरण के लिए एक बायो-क्लचर विकसित किया गया है, जो 12 प्रतिशत की एफिसिएंसी प्राप्त करता है।
पायलट प्लांट की स्थापना
डॉ। जोशी ने बताया कि 500 किलोग्राम प्रतिदिन की क्षमता वाला एक पूर्णत: स्केलेबल पायलट प्लांट एमआईटी-डब्ल्यूपीयू परिसर में स्थापित किया गया है। इस प्लांट से उत्पन्न बायोगैस में मीथेन की उच्च मात्रा पाई गई है, जिसका उपयोग ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में किया जा रहा है।
जलवायु परिवर्तन के समाधान में योगदान
एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ। राहुल कराड ने कहा कि यह शोध अनुसंधान, नवाचार और सामाजिक जिम्मेदारी के सही मिश्रण को दर्शाता है, जो जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा सुरक्षा जैसी गंभीर चुनौतियों का समाधान कर सकता है।