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कोरोना के बाद भारतीयों में फेफड़ों की समस्याएं अधिक: अध्ययन

वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह सामने आया है कि कोरोना महामारी के बाद भारतीयों में फेफड़ों से संबंधित समस्याएं यूरोपीय और चीनी नागरिकों की तुलना में अधिक हैं। अध्ययन में 207 लोगों का सर्वेक्षण किया गया, जिसमें यह पाया गया कि कुछ मरीजों को एक साल तक और कुछ को जीवनभर फेफड़ों की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। विशेषज्ञों का कहना है कि मध्यम से गंभीर कोरोना के मरीजों को उचित उपचार की आवश्यकता होती है।
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कोरोना के बाद भारतीयों में फेफड़ों की समस्याएं अधिक: अध्ययन

कोरोना महामारी के प्रभाव पर अध्ययन

सूचना स्रोत: वेल्लोर स्थित क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज (सीएमसी) ने कोरोना महामारी के चलते फेफड़ों से जुड़ी समस्याओं पर एक महत्वपूर्ण अध्ययन किया है। यह शोध पत्र पीएलओएस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। अध्ययन के अनुसार, भारतीयों में फेफड़ों से संबंधित समस्याएं यूरोपीय और चीनी नागरिकों की तुलना में अधिक देखी जा रही हैं। कुछ मरीजों में यह समस्या एक साल तक बनी रहती है, जबकि अन्य को जीवनभर इसके साथ जीना पड़ता है।



अध्ययन से यह भी पता चला है कि कोरोना से प्रभावित भारतीयों में फेफड़ों की कार्यक्षमता में कमी अधिक है। इस विषय पर 207 लोगों का सर्वेक्षण किया गया। वेल्लोर सीएमसी कॉलेज के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ. टी.जे. क्रिस्टोफर ने बताया कि कोरोना वायरस के बाद के अध्ययनों में भारतीय सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।


फेफड़ों की जटिलताओं का प्रबंधन

मुंबई के नानावती अस्पताल के पल्मोनोलॉजी प्रमुख डॉ. सलिल बेंद्रे ने कहा कि मध्यम से गंभीर कोरोना से प्रभावित मरीजों को अस्पताल में भर्ती कराना आवश्यक है। उन्हें ऑक्सीजन और स्टेरॉयड उपचार की आवश्यकता होती है। फेफड़ों की क्षति वाले 95% मरीजों में इस उपचार से समस्या का समाधान हो जाता है, जबकि 4 से 5% मरीजों को जीवनभर फेफड़ों की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।