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कोरोना के बाद भारतीयों में फेफड़ों की समस्याएं अधिक: अध्ययन

वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह सामने आया है कि कोरोना महामारी के बाद भारतीयों में फेफड़ों से जुड़ी समस्याएं अधिक देखने को मिल रही हैं। शोध में पाया गया कि कुछ मरीजों को यह समस्या एक साल तक बनी रहती है, जबकि अन्य को जीवनभर इसका सामना करना पड़ता है। अध्ययन के अनुसार, भारतीयों में संक्रमण की दर अधिक है और फेफड़ों की कार्यक्षमता भी प्रभावित हुई है। जानें इस अध्ययन के बारे में और फेफड़ों की समस्याओं के उपचार के उपाय।
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कोरोना के बाद भारतीयों में फेफड़ों की समस्याएं अधिक: अध्ययन

वेल्लोर के सीएमसी अस्पताल का अध्ययन

न्यूज मीडिया :- वेल्लोर स्थित क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज (सीएमसी) ने कोरोना महामारी के चलते फेफड़ों से जुड़ी समस्याओं पर एक महत्वपूर्ण अध्ययन किया है। यह शोध पत्र पीएलओएस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। अध्ययन में पाया गया है कि कोरोना के बाद भारतीयों को यूरोपीय और चीनी नागरिकों की तुलना में फेफड़ों से संबंधित समस्याएं अधिक हो रही हैं। कुछ मरीजों में यह समस्या एक साल तक बनी रहती है, जबकि अन्य को जीवनभर इसके साथ जीना पड़ता है।



शोध से यह भी स्पष्ट हुआ है कि कोरोना से प्रभावित भारतीयों में संक्रमण की दर अधिक है और फेफड़ों की कार्यक्षमता भी अधिक प्रभावित हुई है। इस अध्ययन में 207 व्यक्तियों का सर्वेक्षण किया गया। वेल्लोर सीएमसी कॉलेज के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ. टी.जे. क्रिस्टोफर ने बताया कि कोरोना वायरस के बाद के सभी अध्ययनों में भारतीय सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।


फेफड़ों की समस्याओं का उपचार

मुंबई के नानावती अस्पताल के पल्मोनोलॉजी प्रमुख डॉ. सलिल बेंद्रे का कहना है कि मध्यम से गंभीर कोरोना से प्रभावित मरीजों को फुफ्फुसीय जटिलताओं के विकास के कारण अस्पताल में भर्ती किया जाना चाहिए। उन्हें ऑक्सीजन और स्टेरॉयड उपचार की आवश्यकता होती है। फेफड़ों की क्षति वाले 95% रोगियों में, इस उपचार के बाद समस्या का समाधान हो जाता है, जबकि 4 से 5% मरीजों को जीवनभर फेफड़ों की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।