क्या जीएम फसलें भारतीय कृषि के लिए फायदेमंद या हानिकारक हैं?

जीएम फसलों का विवाद
क्या जीएम फसलें कृषि के लिए फायदेमंद हैं या हानिकारक? नीति आयोग ने पहले कहा था कि इनका आयात कृषकों को नुकसान नहीं पहुंचाएगा, तो अब अपने वर्किंग पेपर को वापस लेने का क्या कारण है?
नीति आयोग का उद्देश्य देश के हित में सही सुझाव देना है, या फिर उसकी भूमिका सरकार के निर्णयों को सही ठहराने तक सीमित रह गई है? यह सवाल हाल ही में आयोग के कुछ अध्ययन पत्रों के संदर्भ में उठ रहा है। कुछ समय पहले, आयोग का एक पत्र चर्चा में आया, जिसमें भारत में चीनी कंपनियों के निवेश के लिए अनुकूल माहौल बनाने की सिफारिश की गई थी। यह तब हुआ जब मोदी सरकार ने चीन के साथ संबंध सामान्य करने की दिशा में कदम बढ़ाए थे। एक और पत्र में, आयोग ने सोयाबीन और मक्के की जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) फसलों के लिए भारत का दरवाजा खोलने का सुझाव दिया।
यह उस समय की बात है जब भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते की उम्मीदें बढ़ रही थीं। लेकिन समझौता नहीं हुआ, और अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया। अब खबर आई है कि नीति आयोग ने जीएम फसलों से संबंधित अपने वर्किंग पेपर को वापस ले लिया है। यह घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई थी, जिसमें उन्होंने कहा कि वे किसानों के हितों की रक्षा के लिए किसी भी कीमत पर तैयार हैं। किसानों के हित से जुड़े मुद्दों में जीएम फसलें भी शामिल हैं।
यहां सवाल उठता है कि क्या जीएम फसलें भारतीय कृषि के लिए लाभकारी हैं या हानिकारक? नीति आयोग के शोधकर्ताओं ने पहले कहा था कि इनका आयात कृषकों को नुकसान नहीं पहुंचाएगा, तो अब इस निष्कर्ष को वापस लेने का क्या कारण है? क्या पहले से यह समझ थी कि इन फसलों को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, फिर भी व्यापार समझौते में भारत सरकार की मदद के लिए यह सिफारिश की गई? नीति आयोग को इन सवालों के स्पष्ट उत्तर देने चाहिए, अन्यथा उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठ सकते हैं।