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ट्रॉमा सेंटर में इलाज छोड़ने से बढ़ता है मौत का जोखिम: नई रिसर्च

हाल ही में एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि ट्रॉमा सेंटर में भर्ती मरीजों द्वारा इलाज छोड़ने से उनकी मृत्यु का जोखिम तीन गुना बढ़ जाता है। अध्ययन में आर्थिक तंगी को मुख्य कारण बताया गया है, जिससे मरीजों को इलाज बीच में छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है। शोधकर्ताओं ने सरकारी अस्पतालों पर बढ़ते दबाव और इसके संभावित खतरों पर भी प्रकाश डाला है। जानें इस अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष और सरकार के लिए सुझाव।
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ट्रॉमा सेंटर में इलाज छोड़ने से बढ़ता है मौत का जोखिम: नई रिसर्च

रिसर्च का चौंकाने वाला खुलासा

हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि ट्रॉमा सेंटर में भर्ती मरीजों द्वारा इलाज बीच में छोड़ने से उनकी मृत्यु का खतरा तीन गुना बढ़ जाता है। यह अध्ययन देशभर के सरकारी और निजी ट्रॉमा सेंटरों में मरीजों को पेश आने वाली आर्थिक और चिकित्सा समस्याओं को उजागर करता है। आइए, इस अध्ययन के मुख्य निष्कर्षों और उनके प्रभावों पर विस्तार से चर्चा करें।


आर्थिक तंगी का प्रभाव

अध्ययन के अनुसार, गंभीर रूप से बीमार मरीज जो निजी ट्रॉमा सेंटरों में भर्ती होते हैं, वे सबसे अधिक इलाज बीच में छोड़ते हैं। इसका मुख्य कारण आर्थिक कठिनाई है, जिसमें लगभग 42% मरीजों ने अस्पताल के भारी बिलों के कारण डिस्चार्ज अगेंस्ट मेडिकल एडवाइस (DAMA) लिया। इनमें से अधिकांश निम्न और मध्यम आय वर्ग से संबंधित हैं।


डॉ. जोसेस डैनी जेम्स का बयान

आर्थिक मजबूरी बनी इलाज छोड़ने की सबसे बड़ी वजह

इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता और वेल्लोर सीएमसी के ट्रॉमा सर्जरी विशेषज्ञ डॉ. जोसेस डैनी जेम्स ने कहा, “अक्सर देखा गया है कि अस्पतालों के भारी बिलों के कारण परिजन मरीज को निजी अस्पताल की बजाय सरकारी अस्पताल में भर्ती कराना बेहतर समझते हैं। लेकिन क्या यह ट्रॉमा सेंटर में भर्ती मरीजों पर भी लागू होता है, यह जानने के लिए हमने यह अध्ययन किया।”


मौतों का बढ़ता खतरा

मौतों का बढ़ता तेजी से खतरा

अध्ययन में 2486 मरीजों के रिकॉर्ड की जांच की गई, जिसमें पाया गया कि इलाज बीच में छोड़ने वाले 35% मरीजों की अगले छह महीनों में मृत्यु हो गई। विशेष रूप से दिमाग और रीढ़ की हड्डी की चोटों से पीड़ित मरीजों ने सबसे अधिक इलाज अधूरा छोड़ा, जिससे उनकी मृत्यु का जोखिम दो से तीन गुना बढ़ गया। हालांकि, 77% मरीज बाद में किसी अन्य अस्पताल में भर्ती हुए, जिनमें से अधिकांश ने सरकारी अस्पतालों का रुख किया।


सरकारी अस्पतालों पर बढ़ता दबाव

सरकारी अस्पतालों पर बढ़ता दबाव

अध्ययन से यह भी पता चला कि इलाज छोड़ने वाले 65% मरीज कुछ समय बाद दोबारा अस्पताल में भर्ती हुए। इनमें से अधिकांश ने सरकारी अस्पतालों का सहारा लिया, क्योंकि निजी अस्पतालों के खर्चे उनके लिए बहुत अधिक थे। यह स्थिति न केवल मरीजों के लिए खतरनाक है, बल्कि सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर भी अतिरिक्त बोझ डाल रही है।


सरकार के लिए सुझाव

सरकार के लिए क्या हैं सुझाव!

डॉ. जोसेस डैनी जेम्स ने इस समस्या को राष्ट्रीय स्तर की चुनौती बताया। उन्होंने कहा, “यह समस्या केवल एक निजी अस्पताल तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश में गंभीर ट्रॉमा और बीमारियों के इलाज में एक बड़ी चुनौती है। सरकार को सभी ट्रॉमा सेंटरों पर रिसर्च करानी चाहिए और आर्थिक सहायता बढ़ानी चाहिए। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए इलाज अधूरा छोड़ना मजबूरी बन सकता है।”