डॉ. मोहन भागवत का बयान: भारत का इतिहास केवल रिकॉर्ड नहीं, बल्कि एक सीख है
अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना का आयोजन
पानीपत में अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के तेरहवें राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का आयोजन माधव सेवा न्यास केंद्र पट्टीकल्याणा समालखा पर हुआ, जिसमें भारतीय इतिहास, संस्कृति और संविधान पर सेमिनार का उद्घाटन किया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक डॉ. मोहन भागवत ने इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया और जम्मू-कश्मीर-लद्दाख पर आधारित चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन किया।
मुख्य विषय पर डॉ. प्रशान्त गौरव का व्याख्यान
सेमिनार के संयोजक डॉ. प्रशान्त गौरव ने मुख्य विषय पर विस्तार से जानकारी दी। उद्घाटन समारोह में केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत, पद्मश्री प्रो. रघुवेन्द्र तंवर, गोपाल नारायण सिंह, डॉ. देवी प्रसाद सिंह, प्रो. ईश्वरशरण विश्वकर्मा और डॉ. बालमुकुंद पांडेय जैसे प्रमुख व्यक्तियों ने भाग लिया।
समाज की परंपराएं और धर्म का महत्व
डॉ. मोहन भागवत ने अपने संबोधन में कहा कि धर्म का अर्थ सभी को सुख देना और एकता स्थापित करना है। उन्होंने बताया कि प्राचीन काल में राजा धर्म के अनुसार शासन करता था, जो समाज को नियंत्रित करता था। उन्होंने यह भी कहा कि आज भी समाज का संचालन इसी परंपरा पर निर्भर है।
धर्म और संविधान का संबंध
उन्होंने संविधान की चर्चा करते हुए कहा कि पहले देश है, फिर संविधान। धर्म का उद्देश्य सभी को जोड़ना और सुख देना है। उन्होंने रामायण का उदाहरण देते हुए बताया कि यह हमें सही और गलत का पाठ पढ़ाता है।
इतिहास का समाज पर प्रभाव
डॉ. भागवत ने कहा कि इतिहास केवल रिकॉर्ड नहीं है, बल्कि यह हमें उचित और अनुचित का ज्ञान देता है। उन्होंने अयोध्या मंदिर का उल्लेख करते हुए कहा कि मंदिरों का तोड़ा जाना राष्ट्र के विकास में बाधा है।
भारत का लोकतंत्र और विकास
उन्होंने 1947 में देश की आजादी के बाद की चुनौतियों का जिक्र करते हुए कहा कि भारत ने प्रजातंत्र के रूप में आगे बढ़ने में सफलता प्राप्त की है। उन्होंने कहा कि आज भारत दुनिया को विकास का मार्ग दिखा रहा है।
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