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दशहरा 2025: पूजा विधि और विजय मुहूर्त

दशहरा 2025, जिसे विजयदशमी के नाम से भी जाना जाता है, बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह पूरे भारत में मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है, जिसमें देवी दुर्गा की पूजा और रावण के पुतले का दहन शामिल है। इस लेख में, हम 2025 के लिए दशहरा पूजा का मुहूर्त, अनुष्ठान और पूजा विधि के बारे में जानेंगे। जानें कि इस दिन कैसे पूजा करनी है और विजय मुहूर्त का महत्व क्या है।
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दशहरा 2025: पूजा विधि और विजय मुहूर्त

दशहरा 2025: त्योहार का महत्व

Dussehra 2025: दशहरा, जिसे विजयदशमी के नाम से भी जाना जाता है, बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह पूरे भारत में एक प्रमुख त्योहार के रूप में मनाया जाता है, जिसमें विभिन्न अनुष्ठान, प्रार्थनाएं और कार्यक्रम शामिल होते हैं। इस पर्व का मुख्य आकर्षण देवी दुर्गा की पूजा और रावण के पुतले का दहन है। आइए जानते हैं इस वर्ष दशहरा का विजय मुहूर्त क्या है। 


2025 के लिए दशहरा पूजा का मुहूर्त

2025 के लिए सर्वश्रेष्ठ दशहरा पूजा मुहूर्त: भारत के विभिन्न हिस्सों में विजय मुहूर्त दोपहर 2:05 से 2:53 बजे तक रहेगा। वहीं, बंगाल में विजयादशमी का मुहूर्त दोपहर 1:17 से 3:41 बजे तक है। आश्विन माह की दशमी तिथि 1 अक्टूबर को शाम 7:01 बजे से प्रारंभ होकर 2 अक्टूबर को शाम 7:10 बजे तक चलेगी। 


दशहरा अनुष्ठान और महत्व

  • दुर्गा पूजा का समापन: यह 9 दिवसीय दुर्गा पूजा या नवरात्रि उत्सव का अंतिम दिन है, जब शक्ति और अच्छाई की विजय के लिए प्रार्थना की जाती है।

  • उपवास और प्रसाद: पूजा के दौरान लोग देवताओं को फल, मिठाई, फूल और अन्य वस्तुएं चढ़ाकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

  • विजय मुहूर्त पूजा: यह पूजा का सबसे महत्वपूर्ण समय माना जाता है, क्योंकि इस दौरान अनुष्ठान करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है। 


दशहरे की पूजा कैसे करें

  • दशहरा के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें।

  • फिर गेहूं या चूने से दशहरा की प्रतिमा बनाएं। 

  • गाय के गोबर से नौ गोले बनाकर उन पर जौ और दही लगाएं। 

  • भगवान राम की झांकी पर जौ चढ़ाएं और कुछ लोग इसे अपने कानों में भी रखते हैं। 

  • गोबर से दो कटोरियां बनाकर एक में सिक्के और दूसरी में रोली, चावल, फल, फूल और जौ डालें। 

  • प्रतिमा पर केले, मूली, ग्वारफली, गुड़ और चावल चढ़ाकर धूप-दीप जलाएं। 

  • इस दिन बहीखाता पूजा भी की जाती है, तो उस पर भी जौ और रोली चढ़ाएं। 

  • अंत में ब्राह्मणों को दान दें और रावण दहन के बाद घर के बड़े-बुजुर्गों से आशीर्वाद प्राप्त करें।