दिल्ली हाई कोर्ट ने गर्भपात के लिए मेडिकल बोर्ड गठित करने का दिया आदेश

दिल्ली हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय
दिल्ली हाई कोर्ट: दिल्ली हाई कोर्ट ने सफदरजंग अस्पताल को निर्देश दिया है कि वह एक मेडिकल बोर्ड का गठन करे, जो यह निर्धारित करे कि क्या 29 सप्ताह की गर्भवती महिला, जो क्रोनिक किडनी रोग से ग्रसित है, गर्भपात कर सकती है। यह निर्णय एक याचिका की सुनवाई के दौरान लिया गया, जिसमें महिला ने अपनी गंभीर स्वास्थ्य स्थिति के कारण गर्भपात की अनुमति मांगी थी।
महिला की स्वास्थ्य स्थिति
महिला की स्थिति: याचिकाकर्ता, 27 वर्षीय महिला, ने अदालत को बताया कि वह कई वर्षों से क्रोनिक किडनी रोग से पीड़ित हैं। गर्भावस्था के दौरान उनकी स्थिति और भी गंभीर हो गई है, जिससे उनके और बच्चे के स्वास्थ्य को खतरा उत्पन्न हो गया है। महिला के वकील ने तर्क दिया कि गर्भावस्था को जारी रखना मां के लिए जानलेवा हो सकता है, इसलिए गर्भपात की अनुमति दी जानी चाहिए। भारत में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी अधिनियम के तहत, 24 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए विशेष परिस्थितियों में अदालत की अनुमति आवश्यक है।
मेडिकल बोर्ड का गठन
कोर्ट का आदेश: अदालत ने मामले की गंभीरता को देखते हुए सफदरजंग अस्पताल को तुरंत एक मेडिकल बोर्ड गठित करने का आदेश दिया। इस बोर्ड में विशेषज्ञ चिकित्सक शामिल होंगे, जो महिला की स्वास्थ्य स्थिति और गर्भपात के संभावित जोखिमों का मूल्यांकन करेंगे। बोर्ड को यह भी देखना होगा कि गर्भपात का मां और बच्चे पर क्या प्रभाव पड़ेगा। अदालत ने अस्पताल से जल्द से जल्द रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है, ताकि इस संवेदनशील मामले में उचित निर्णय लिया जा सके।
मां की सुरक्षा प्राथमिकता
चिकित्सा और नैतिकता: यह मामला चिकित्सा और नैतिकता से जुड़ा हुआ है, क्योंकि गर्भावस्था के इस चरण में गर्भपात जटिल और जोखिम भरा हो सकता है। अदालत ने कहा कि मां की जान बचाना प्राथमिकता है, लेकिन इस प्रक्रिया में सभी चिकित्सकीय और कानूनी पहलुओं पर विचार किया जाएगा। इस मामले ने एक बार फिर गर्भपात के नियमों और महिलाओं के स्वास्थ्य अधिकारों पर चर्चा को तेज कर दिया है। समाज में इस तरह के मामलों पर संवेदनशीलता और जागरूकता की आवश्यकता है, ताकि पीड़ित महिलाओं को समय पर न्याय और सहायता मिल सके।