पक्षियों के विलुप्त होने का खतरा: एक गंभीर अध्ययन

पक्षियों की विलुप्ति का संकट
बड़े पंखों वाले, विशाल शरीर वाले और समुद्री तट पर रहने वाले पक्षियों की प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा सामान्य पक्षियों की तुलना में अधिक है। वैश्विक स्तर पर लगभग 5 प्रतिशत पक्षी प्रजातियाँ संकट में हैं, जबकि समुद्री तटीय पक्षियों में यह आंकड़ा 12 प्रतिशत है।
हाल ही में हुए एक अध्ययन में बताया गया है कि पिछले 500 वर्षों में जितने पक्षी विलुप्त हुए हैं, उससे तीन गुना अधिक पक्षी अगले 100 वर्षों में समाप्त हो सकते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह विलुप्ति केवल पक्षियों को ही नहीं, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करेगी। यह अध्ययन यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग, ग्रेट ब्रिटेन के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है और इसे नेचर एंड इकोलॉजी इवोल्यूशन जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
इस अध्ययन में पक्षियों की लगभग 10,000 प्रजातियों का गहन आकलन किया गया है, जिसमें उनके आवास और अस्तित्व पर खतरों का मूल्यांकन किया गया है। यह आकलन इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर की रेड लिस्ट के आधार पर किया गया है, जिसमें संकट में पड़ी प्रजातियों की जानकारी दी गई है।
अगले 100 वर्षों में लगभग 500 पक्षी प्रजातियों का प्राकृतिक अस्तित्व समाप्त होने की संभावना है, जिसका मुख्य कारण उनके आवास का विनाश है। जनसंख्या वृद्धि के कारण कृषि क्षेत्र का विस्तार हो रहा है, जिसके चलते बड़े पैमाने पर वनों की कटाई, घास के मैदानों का नाश और समुद्री तटीय भूमि पर खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। भूमि उपयोग में परिवर्तन और प्राकृतिक संसाधनों का विनाश अभूतपूर्व गति से हो रहा है। इसके अलावा, शिकार, जलवायु परिवर्तन और गैर-स्थानीय प्रजातियों का बढ़ता प्रभाव भी पक्षियों के अस्तित्व को खतरे में डाल रहा है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि आज से तापमान वृद्धि को रोक दिया जाए और प्राकृतिक संसाधनों के विनाश पर रोक लगाई जाए, तब भी अगले 100 वर्षों में कम से कम 250 से 350 प्रजातियाँ विलुप्त हो जाएँगी।
कुछ प्रजातियों को कैप्टिव प्रजनन विधि के माध्यम से बचाया जा सकता है, जिसमें इनका प्रजनन प्रयोगशालाओं में किया जाता है और फिर इन्हें प्राकृतिक आवासों में छोड़ा जाता है। उदाहरण के लिए, 1987 में उत्तरी अमेरिका में कैलिफोर्निया कोंडोर पूरी तरह से विलुप्त हो गया था, लेकिन इसके 22 सदस्य सुरक्षित रहे और अब तक 350 कोंडोर को प्राकृतिक आवासों में छोड़ा जा चुका है।
बड़े पंखों वाले और बड़े शरीर वाले पक्षियों के लिए खतरा सामान्य पक्षियों की तुलना में अधिक है। जलवायु परिवर्तन और शिकार के कारण इन प्रजातियों पर खतरा बढ़ता जा रहा है।
तापमान वृद्धि के कारण पक्षियों के आकार में परिवर्तन का खतरा भी बढ़ रहा है। अत्यधिक ठंड में पक्षी अपने पैरों और चोंच को पंखों से ढक लेते हैं, जबकि गर्मी में वे सीधे खड़े रहते हैं।
द रॉयल सोसाइटी पब्लिशिंग में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण पक्षियों को अपने शरीर की गर्मी को अधिक तेजी से निकालने की आवश्यकता होगी, जिससे उनके पैर और चोंच लंबे हो सकते हैं।
आईयूसीएन की रेड लिस्ट के अनुसार, दुनिया में पक्षियों की कुल ज्ञात प्रजातियों में से 49 प्रतिशत की संख्या में कमी आ रही है। उत्तरी अमेरिका में 1970 के बाद से पक्षियों की संख्या में लगभग दो-तिहाई की कमी आई है।
भारत में लगभग 1350 पक्षी प्रजातियाँ हैं, जिनमें से 178 प्रजातियाँ संकट में हैं। इन प्रजातियों में नीलकंठ जैसी प्रजातियाँ भी शामिल हैं, जिन्हें पहले बहुतायत में देखा जाता था।
यह स्पष्ट है कि वैश्विक स्तर पर पक्षियों की प्रजातियाँ संकट में हैं। बेतरतीब विकास, जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई और शिकार जैसे कारक इस संकट को और बढ़ा रहे हैं। स्टेट ऑफ द वर्ल्डस बर्ड्स रिपोर्ट के अनुसार, 50 प्रतिशत से अधिक पक्षी प्रजातियों की संख्या में भारी गिरावट आई है।