पूर्णिमा श्राद्ध: पितरों के प्रति श्रद्धांजलि का विशेष दिन

पूर्णिमा श्राद्ध का महत्व
भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा श्राद्ध इस रविवार को मनाई जाएगी। यह दिन पितृ पक्ष से एक दिन पहले आता है, जब उन सभी पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु पूर्णिमा तिथि पर हुई थी.
ज्योतिषीय स्थिति
दृक पंचांग के अनुसार, इस दिन सूर्य सिंह राशि में और चंद्रमा कुंभ राशि में रहेगा। अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:54 बजे से शुरू होकर दोपहर 12:44 बजे तक रहेगा.
श्राद्ध की प्रक्रिया
पूर्णिमा श्राद्ध को पार्वण श्राद्ध भी कहा जाता है। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए आयोजित किया जाता है जिनका निधन पूर्णिमा तिथि को हुआ। मान्यता है कि इस दिन श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं. यह पितृ पक्ष की शुरुआत से पहले एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है.
अनुष्ठान की विधि
विद्वानों के अनुसार, श्राद्ध के सभी अनुष्ठान अपराह्न काल (दोपहर 12 बजे के बाद से मध्य रात्रि के पहले) समाप्त होने चाहिए। अनुष्ठान के अंत में तर्पण करना अनिवार्य है, जो पितरों को तृप्त करने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.
दान और तर्पण
श्राद्ध कर्म में पितरों के नाम से दान, तर्पण और ब्राह्मण भोज कराया जाता है। यह माना जाता है कि ब्राह्मणों को भोजन कराने से वह सीधे पूर्वजों तक पहुंचता है. इसके बाद शुभ मुहूर्त में पवित्र नदी या घर पर तर्पण किया जाता है. इस दिन सात्विक भोजन और दान का विशेष महत्व है.
कौए, गाय और कुत्ते को भोजन
श्राद्ध का एक महत्वपूर्ण भाग कौए (यम का दूत), गाय और कुत्ते को भोजन कराना है, क्योंकि इन्हें पूर्वजों का प्रतिनिधि माना जाता है.
धार्मिक अनुष्ठान का महत्व
यह धार्मिक अनुष्ठान न केवल पितरों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने का अवसर है, बल्कि यह परिवार की सुख-शांति और समृद्धि के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है.