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फतेहाबाद के किसान ने जल संरक्षण से बदली फसल की किस्मत

फतेहाबाद के किसान तुलसी दास मेहता ने जल रिचार्ज प्रणाली अपनाकर बाढ़ और सूखे से फसल बर्बादी की समस्या का समाधान किया है। उनकी तकनीक ने न केवल भूजल स्तर को बढ़ाया है, बल्कि फसल उत्पादन में भी उल्लेखनीय वृद्धि की है। जानें कैसे उन्होंने अपने क्षेत्र में पानी की कमी को दूर किया और कृषि में नई संभावनाएं खोलीं।
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फतेहाबाद के किसान ने जल संरक्षण से बदली फसल की किस्मत

जल संरक्षण की अनोखी तकनीक

फतेहाबाद समाचार : फतेहाबाद के मॉडल टाउन में रहने वाले तुलसी दास (टीडी) मेहता हर साल बाढ़ के कारण अपनी फसलें बर्बाद होते देख परेशान थे। 2008 में उन्होंने एक प्रभावी जल रिचार्ज प्रणाली अपनाई, जिससे उन्हें इस समस्या से स्थायी समाधान मिला। पिछले 17 वर्षों में उनका बोर कभी भी बंद नहीं हुआ। लगभग 7.5 लाख रुपये की लागत से भूजल स्तर 40 फीट तक बढ़ गया है।


पानी की कमी में कमी

खानमोहम्मद के आसपास 2 किलोमीटर के क्षेत्र में पानी की कमी में कमी आई है। टीडी मेहता बताते हैं कि उन्होंने 1995 में फतेहाबाद में जमीन खरीदी थी, जहां बारिश में पानी भर जाता था और कभी सूखा भी पड़ता था। पहले धान की पैदावार 8 से 10 क्विंटल और गेहूं की 6 से 7 क्विंटल प्रति एकड़ होती थी।


जल संरक्षण के लिए बोरिंग

2008 में, उन्होंने जल संरक्षण के लिए 10 इंच चौड़ा और 415 फीट गहरा ट्यूबवेल बोर कराया। इसमें 2 इंच की बारीक छिद्र वाली सीमेंट पाइपें 20 फीट गहराई तक डाली गईं। इसके साथ ही 200 फीट डिलीवरी पाइप और 25 एचपी की सबमर्सिबल मोटर लगाई गई। टीडी मेहता को हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय से कई बार सम्मानित किया जा चुका है।


पानी की गुणवत्ता में सुधार

हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. अनिल दूहन के अनुसार, टीडी मेहता के रिचार्ज बोर ट्यूबवेल से 18 बार सैंपल लिए गए, और हर बार पानी की गुणवत्ता उत्कृष्ट पाई गई। इसमें किसी भी प्रकार के पेस्टीसाइड का कोई निशान नहीं था। उनके सिस्टम में पानी डालने और निकालने के लिए अलग-अलग इंतजाम हैं, जो इसे विशेष बनाते हैं।


पत्थरों से बना जल टैंक

बारिश के पानी को जमीन में समाने के लिए, टीडी मेहता ने यमुनानगर से 60 हजार रुपये में 350 फीट गोल पत्थर मंगवाए और उन्हें टैंक में डलवाया। इसके बाद पानी छिद्रों के माध्यम से ट्यूबवेल के जरिए जमीन में रिसता रहा, जिससे ट्यूबवेल का पानी का प्रेशर बेहतर हुआ और बारिश के मौसम में धान की फसल भी सुरक्षित रही।


फसल उत्पादन में वृद्धि

इस प्रणाली के परिणामस्वरूप फसल उत्पादन में स्पष्ट वृद्धि हुई। 2009 में धान की पैदावार 10 क्विंटल से बढ़कर 13.5 क्विंटल प्रति एकड़ हो गई। 2010 में आई बाढ़ में धान तो डूब गया, लेकिन 3.5 महीने तक पानी जमीन में रिचार्ज होता रहा। उस वर्ष गेहूं की पैदावार 11 क्विंटल प्रति एकड़ तक पहुंच गई। 2008 से पहले भूजल स्तर 178 फीट था, जो अब रिचार्ज प्रणाली अपनाने के बाद 138 फीट पर आ गया है। यह किसान की मेहनत का परिणाम है, जो पूरे क्षेत्र के लिए एक प्रेरणा बन गया है।