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बच्चों में मायोपिया का बढ़ता खतरा: जानें कारण और बचाव के उपाय

आधुनिक जीवनशैली और डिजिटल उपकरणों के बढ़ते उपयोग ने बच्चों में मायोपिया के खतरे को बढ़ा दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि बच्चे पर्याप्त समय धूप में और बाहरी गतिविधियों में नहीं बिताते हैं, तो उनकी आंखों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। एक अध्ययन में यह भी पाया गया है कि हर अतिरिक्त एक घंटे की स्क्रीन टाइमिंग से मायोपिया का जोखिम बढ़ता है। जानें इसके कारण, प्रभाव और बचाव के उपाय, ताकि आपके बच्चे की आंखों की सेहत सुरक्षित रहे।
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बच्चों में मायोपिया का बढ़ता खतरा: जानें कारण और बचाव के उपाय

बच्चों में मायोपिया का खतरा

बच्चों में मायोपिया का खतरा: आधुनिक जीवनशैली और डिजिटल उपकरणों की बढ़ती लत ने बच्चों की आंखों पर गंभीर प्रभाव डाला है। आंखों के विशेषज्ञों का कहना है कि यदि बच्चे पर्याप्त समय धूप में और बाहरी गतिविधियों में नहीं बिताते हैं, तो उन्हें मायोपिया जैसी गंभीर समस्या का सामना करना पड़ सकता है। यह समस्या उनकी भविष्य की दृष्टि को प्रभावित कर सकती है।


मायोपिया के कारण

क्यों हो रहा है प्रभाव?

आजकल, बच्चों का अधिकांश समय घर के अंदर मोबाइल, टैबलेट और ऑनलाइन कक्षाओं में बीतता है, जिससे उनकी दृष्टि पर नकारात्मक असर पड़ रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस स्थिति में आंखों की कोशिकाएं अधिक तनाव में रहती हैं और लंबे समय तक निकट दृष्टि पर काम करने से मायोपिया का खतरा बढ़ता है। एक अध्ययन में यह पाया गया है कि हर अतिरिक्त एक घंटे की स्क्रीन टाइमिंग से बच्चों में मायोपिया का जोखिम लगभग 21% बढ़ जाता है।


सूरज की रोशनी का महत्व

सूरज की रोशनी बचाती है आँखें

दूसरी ओर, शोध से पता चलता है कि बच्चों को प्रतिदिन कम से कम 90 मिनट की हल्की धूप में बिताना चाहिए। यह निकट दृष्टिदोष को रोकने और उसके विकास को धीमा करने में मददगार साबित होता है। प्राकृतिक रोशनी में डॉपामाइन नामक न्यूरोट्रांसमीटर की मात्रा बढ़ती है, जो आंखों के विकास को नियंत्रित करता है।


भारत में बढ़ती चिंता

भारत में चेतावनी ज़ोर पकड़ रही है

विशाखापत्तनम और विजयवाड़ा के विशेषज्ञों का कहना है कि यदि यह प्रवृत्ति जारी रही, तो 2050 तक भारत में लगभग 50% बच्चे मायोपिया के शिकार हो सकते हैं। वे सुझाव देते हैं कि माता-पिता बच्चों के स्क्रीन टाइम को नियंत्रित करें, नियमित आंखों की जांच कराएं, और रोजाना कम से कम दो घंटे बाहरी गतिविधियों में भाग लें, जैसे खेल, साइकिलिंग या पैदल चलना।


बचाव के उपाय

बचाव के उपाय:

1- स्क्रीन टाइम सीमित करें: हर 20 मिनट पढ़ाई या स्क्रीन वर्क के बाद 20 सेकंड के लिए दूर किसी बिंदु की ओर देखें।

2- उचित प्रकाश का ध्यान रखें: पढ़ाई और खेलने के लिए अच्छी रोशनी वाली जगह चुनें।

3- नज़दीकी पेशेंट्स की जाँच: यदि माता-पिता में निकट दृष्टिदोष की समस्या हो, तो बच्चे को विशेष रूप से निगरानी में रखें।