बेरोज़गारी का संकट: एक सामाजिक विस्फोट की ओर बढ़ते कदम

बेरोज़गारी की गंभीरता
वर्तमान में, जब भी किसी सरकारी पद के लिए भर्ती की जाती है, चाहे वह चपरासी का हो या क्लर्क का, लाखों योग्य युवा आवेदन करते हैं। यह स्थिति बिहार, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में सामान्य हो चुकी है। यह केवल बेरोज़गारी का संकेत नहीं है, बल्कि एक सामाजिक विस्फोट की चेतावनी भी है।
हाल ही में उत्तर प्रदेश से एक रिपोर्ट आई है जिसमें बताया गया है कि 2,000 सरकारी पदों के लिए 29 लाख से अधिक आवेदन प्राप्त हुए। यह पहली बार नहीं है; समय-समय पर यह देखा गया है कि आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से स्नातक होने के बावजूद 38% युवा बेरोज़गार रह जाते हैं। ये आंकड़े एक गहरे संकट की ओर इशारा करते हैं, जो हमारी अर्थव्यवस्था से कहीं अधिक समाज की शांति और लोकतंत्र की स्थिरता को चुनौती दे रहा है।
सोशल मीडिया पर हताशा
जब युवा सड़कों पर उतरते हैं, तो उन पर लाठियाँ बरसाई जाती हैं। जब सरकारी नौकरियों की उम्मीदें टूटती हैं, तो वे निजी क्षेत्र की ओर मुड़ते हैं, जहाँ शोषण और अस्थिरता उनका इंतज़ार करती है। दुर्भाग्य से, अब निजी क्षेत्र में भी नौकरियों के अवसर तेजी से घट रहे हैं।
सामाजिक और सांस्कृतिक संकट
बेरोज़गारी की इस गंभीर स्थिति ने समाज की संरचना को भी प्रभावित किया है। लाखों युवक-युवतियाँ विवाह नहीं कर पा रहे हैं, पारिवारिक जिम्मेदारियाँ नहीं निभा पा रहे हैं, और सामाजिक विषाद का शिकार हो रहे हैं। यह केवल एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि नीति-निर्माताओं के लिए एक चेतावनी है कि यदि इस वर्ग की आकांक्षाएँ बार-बार कुचली जाती रहीं, तो यह हताशा किसी दिन व्यवस्था के खिलाफ असंतोष का रूप ले सकती है।
अनौपचारिक श्रम का संकट
भारत अब दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा अनौपचारिक मज़दूरी आधारित देश बन चुका है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, देश के 53.5 करोड़ मज़दूरों में से लगभग 40 करोड़ असुरक्षित स्थितियों में काम कर रहे हैं, जिनकी आमदनी ₹200 प्रतिदिन से भी कम है।
समाधान के उपाय
स्थानीय सरकारों को मज़बूत करना, मानव श्रम आधारित नगरीकरण को प्रोत्साहित करना, स्वास्थ्य और सफाई क्षेत्रों में रोजगार योजनाएँ बनाना, शहरी बुनियादी ढाँचे में निवेश करना, और छोटे व मध्यम उद्योगों का पुनरुद्धार करना आवश्यक है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में हर साल 2 करोड़ नौकरियाँ देने का वायदा किया था, जो अब बेरोज़गार युवाओं के लिए एक कटाक्ष बन चुका है। सभी राजनीतिक दलों को मिलकर एक साझा राष्ट्रीय नीति बनानी चाहिए, जिससे न केवल नौकरियाँ पैदा हों, बल्कि उनका न्यायसंगत वितरण भी हो।
भविष्य की चेतावनी
बेरोज़गारी अब केवल एक आर्थिक समस्या नहीं रह गई है; यह एक राष्ट्रव्यापी आकांक्षा संकट में बदल चुकी है। यदि समय रहते हम नहीं चेते, तो आने वाला दशक बेरोज़गारी नहीं, बल्कि विस्फोट का होगा।