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बॉम्बे हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: पत्नी के कमाने से भरण-पोषण का अधिकार नहीं खत्म होता

बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि पत्नी की कमाई का मतलब यह नहीं है कि उसे पति से भरण-पोषण का अधिकार नहीं मिलेगा। कोर्ट ने एक पति की अपील को खारिज करते हुए फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें पत्नी को 15,000 रुपये मासिक भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था। यह मामला एक दंपति के बीच के विवाद से संबंधित है, जिसमें पति ने पत्नी के आर्थिक स्वतंत्रता का हवाला देते हुए भरण-पोषण की आवश्यकता से इनकार किया। जानें इस फैसले के पीछे की पूरी कहानी और इसके प्रभाव।
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बॉम्बे हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: पत्नी के कमाने से भरण-पोषण का अधिकार नहीं खत्म होता

बॉम्बे हाई कोर्ट का निर्णय

Bombay High Court: बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि पत्नी की कमाई का मतलब यह नहीं है कि उसे पति से भरण-पोषण का अधिकार नहीं मिलेगा। कोर्ट ने एक पति की अपील को खारिज करते हुए फैमिली कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें पत्नी को 15,000 रुपये मासिक अंतरिम भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था। यह फैसला जस्टिस मंजूषा देशपांडे की एकल पीठ ने 18 जून 2025 को सुनाया, जिसकी विस्तृत कॉपी 26 जून को उपलब्ध हुई।


यह मामला ठाणे के एक दंपति से संबंधित है, जिनकी शादी 28 नवंबर 2012 को हुई थी। पति का कहना है कि पत्नी ने मई 2015 में वैवाहिक घर छोड़ दिया और अपने माता-पिता के साथ रहने लगी। उसने यह भी दावा किया कि पत्नी के व्यवहार ने उनके रिश्ते को खराब कर दिया। पति ने पत्नी की इच्छा के अनुसार नया फ्लैट खरीदा, लेकिन पत्नी का रवैया नहीं बदला। इसके बाद, पति ने बांद्रा के फैमिली कोर्ट में हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक की याचिका दायर की। पत्नी ने 29 सितंबर 2021 को अंतरिम भरण-पोषण के लिए आवेदन दिया, जिस पर 24 अगस्त 2023 को फैमिली कोर्ट ने 15,000 रुपये मासिक भरण-पोषण का आदेश दिया।


पति और पत्नी का तर्क

पति की ओर से वकील शशिपाल शंकर ने यह तर्क दिया कि पत्नी एक स्कूल में कार्यरत है और उसकी मासिक आय 21,820 रुपये है। इसके अलावा, वह ट्यूशन क्लास से सालाना 2 लाख रुपये और सावधि जमा से ब्याज भी कमाती है। पति ने यह दावा किया कि पत्नी आर्थिक रूप से स्वतंत्र है, इसलिए उसे भरण-पोषण की आवश्यकता नहीं है।


वहीं, पत्नी के वकील एसएस दुबे ने कहा कि पति एक कंपनी में वरिष्ठ प्रबंधक है और उसकी आय लाखों में है। उसके पास पर्याप्त संपत्ति और बचत है, फिर भी वह पत्नी को उसके कानूनी अधिकार से वंचित कर रहा है। पत्नी की आय सीमित है, और उसे रोजाना काम के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। वह अपने माता-पिता के साथ रहती है, जो लंबे समय तक संभव नहीं है।


कोर्ट का निर्णय

जस्टिस मंजूषा देशपांडे ने दोनों पक्षों के तर्कों पर ध्यान दिया। कोर्ट ने पाया कि पत्नी की आय खुद का भरण-पोषण करने के लिए अपर्याप्त है। उसे अपने भाई के घर पर माता-पिता के साथ रहना पड़ रहा है, जो सभी के लिए असुविधाजनक है। कोर्ट ने कहा, 'पत्नी की मामूली आय से वह वैसा जीवन स्तर नहीं बनाए रख सकती, जैसा वह वैवाहिक घर में थी।' दूसरी ओर, पति की आय काफी अधिक है, और उस पर कोई वित्तीय जिम्मेदारी नहीं है। कोर्ट ने कहा, 'पत्नी के कमाने का मतलब यह नहीं कि उसे पति से भरण-पोषण नहीं मिलेगा। वह उसी जीवन स्तर की हकदार है, जैसा वह शादी के दौरान थी।'


बॉम्बे हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के 15,000 रुपये मासिक भरण-पोषण के आदेश में हस्तक्षेप से इनकार किया। कोर्ट ने कहा कि पति की आय उसे पत्नी का भरण-पोषण करने में सक्षम बनाती है। यह फैसला उन महिलाओं के लिए एक मिसाल है, जो कमाने के बावजूद अपने वैवाहिक अधिकारों से वंचित की जाती हैं।