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भारत और अमेरिका के बीच तेल खरीद को लेकर बढ़ता तनाव

भारत और अमेरिका के बीच रूस से तेल खरीद को लेकर तनाव फिर से बढ़ता दिख रहा है। व्हाइट हाउस के एक अधिकारी ने भारत पर रूस और चीन के साथ करीबी संबंध बनाने का आरोप लगाया है, जिससे अमेरिकी हथियारों की बिक्री को 'जोखिम भरा' बताया गया है। भारत ने इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा है कि वह अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिए स्वतंत्र है। जानें इस विवाद के पीछे की पूरी कहानी और भारत की प्रतिक्रिया।
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भारत और अमेरिका के बीच तेल खरीद को लेकर बढ़ता तनाव

भारत पर अमेरिकी आरोप और प्रतिक्रिया

वाशिंगटन: रूस से तेल खरीदने के मुद्दे पर अमेरिका और भारत के बीच तनाव फिर से उभरता दिखाई दे रहा है। व्हाइट हाउस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने भारत पर रूस और चीन के साथ संबंधों को बढ़ाने का आरोप लगाया है, जिससे भारत को अमेरिकी हथियारों की बिक्री को 'जोखिम भरा' बताया गया है। भारत ने इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा है कि उसे गलत तरीके से निशाना बनाया जा रहा है।


फाइनेंशियल टाइम्स में प्रकाशित एक लेख में, व्हाइट हाउस के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने भारत के रुख पर तीखी टिप्पणी की। उन्होंने कहा, 'नई दिल्ली अब रूस और चीन के करीब जा रहा है। यदि भारत चाहता है कि हम उसे एक रणनीतिक साझेदार के रूप में देखें, तो उसे भी उसी तरह के कदम उठाने चाहिए।'


नवारो ने यह भी कहा कि भारत, रूस के कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीदार बनकर, उसे महंगे उत्पादों में बदल रहा है और मॉस्को को डॉलर प्रदान कर रहा है, जिसकी उसे सख्त आवश्यकता है। उन्होंने चेतावनी दी कि रूस और चीन के साथ भारत के करीबी संबंध अमेरिकी सैन्य क्षमताओं को भारत को सौंपने में जोखिम पैदा करते हैं।


यह पहली बार नहीं है जब अमेरिकी प्रशासन ने इस मुद्दे पर भारत को घेरा है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी कई बार भारत की रूसी तेल खरीद की आलोचना की थी। ट्रंप के कार्यकाल में भारत पर दो बार 25 प्रतिशत का भारी टैरिफ लगाया गया था, जिसका कारण ब्रिक्स देशों से अमेरिका को होने वाला व्यापार घाटा बताया गया था। उस समय भी भारत पर रूसी तेल खरीद के लिए जुर्माना लगाया गया था।


भारत ने अमेरिकी आपत्तियों का हमेशा की तरह ठोस जवाब दिया है। विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि भारत अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिए सभी आवश्यक निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है। भारत ने अमेरिका को यह भी याद दिलाया कि वह अकेला खरीदार नहीं है, क्योंकि कई यूरोपीय संघ के सदस्य देश भी रूस से बड़ी मात्रा में सामान और ऊर्जा का आयात कर रहे हैं। जब एक पत्रकार ने पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप से इस बारे में सवाल किया, तो वह भी इसका सीधा जवाब देने से बचते नजर आए।