भारत की रक्षा उत्पादन प्रणाली में सुधार की आवश्यकता: वायु सेनाध्यक्ष का बयान
रक्षा तैयारी पर आपूर्ति में देरी का प्रभाव
आपूर्ति में देरी का गंभीर प्रभाव देश की रक्षा तैयारियों और सशस्त्र बलों की जिम्मेदारियों पर पड़ता है। वायु सेनाध्यक्ष ने इस मुद्दे को उठाते हुए कहा कि ऐसी देरी किसी की जान पर भारी पड़ सकती है। उनका भाषण मीडिया में प्रमुखता से छाया रहा। लेकिन क्या इस समस्या का समाधान निकाला जाएगा?
वर्तमान समय में युद्ध औद्योगिक शक्ति का मुकाबला बन गया है, जैसा कि यूक्रेन में रूस के साथ चल रहे संघर्ष में देखा गया है। दोनों पक्ष भारी मात्रा में गोला-बारूद, रॉकेट और बख्तरबंद वाहनों का उत्पादन कर रहे हैं। अब स्वचालित फैक्ट्रियां दिन-रात ड्रोन का निर्माण कर रही हैं।
वायु सेनाध्यक्ष का महत्वपूर्ण भाषण
एयर चीफ मार्शल अमर प्रीत सिंह ने 29 मई को कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज (सीआईआई) के वार्षिक सम्मेलन में भारत के रक्षा उत्पादन क्षेत्र की समस्याओं पर खुलकर बात की। उन्होंने कहा कि रक्षा परियोजनाओं में समय पर पूरा नहीं होने की समस्या गंभीर है।
उन्होंने यह भी बताया कि कंपनियां अक्सर ऐसी समयसीमा तय करती हैं, जो पूरी करना संभव नहीं होता। इस पर उन्होंने चिंता जताई कि रक्षा क्षेत्र में अनुसंधान और विकास (R&D) के लिए भारत को योग्य विशेषज्ञ नहीं मिल पा रहे हैं।
सिंह ने R&D में निवेश बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि समाज की भलाई के लिए समर्पण की भावना दिखाने की जरूरत है।
भारत के रक्षा निर्यात में वृद्धि
भारत के रक्षा निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 2013-14 में यह केवल 686 करोड़ रुपये था, जो 2024-25 में 23,622 करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है। यह नरेंद्र मोदी सरकार की 'मेक इन इंडिया' पहल की सफलता का प्रतीक है।
निजी क्षेत्र का निर्यात में लगभग 60 प्रतिशत और सार्वजनिक क्षेत्र का लगभग 40 प्रतिशत योगदान है। भारत के प्रमुख निर्यात में मिसाइल प्रणालियां, विमान, हेलीकॉप्टर, गोला-बारूद और अन्य रक्षा उपकरण शामिल हैं।
भारतीय कंपनियों की चुनौतियाँ
हालांकि, वायु सेनाध्यक्ष की टिप्पणियों के बाद यह सवाल उठता है कि भारतीय कंपनियों का विदेशी ऑर्डरों में प्रदर्शन कैसा है। रिसर्च से पता चला है कि भारतीय रक्षा कंपनियों का रिकॉर्ड मिश्रित है, जिसमें उत्पादन क्षमता की कमी और नौकरशाही की देरी शामिल हैं।
भारत में रक्षा उत्पादन का निजीकरण 2001 में शुरू हुआ, और अब अधिकांश उत्पादन निजी क्षेत्र के हाथ में है। हालांकि, इस मॉडल में अंतर्निहित समस्याएं हैं, जैसे कि आउटसोर्सिंग और R&D की उपेक्षा।
अमेरिकी रक्षा उत्पादन प्रणाली से सीख
अमेरिका में रक्षा उत्पादन मुख्य रूप से निजी कंपनियों के हाथ में है, जो बड़े अनुबंधों के माध्यम से रक्षा उपकरणों का उत्पादन करती हैं। लेकिन हाल के वर्षों में अमेरिकी रक्षा उत्पादन प्रणाली की आलोचना बढ़ी है।
भारत को इस संदर्भ में एक नया दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, ताकि रक्षा उत्पादन प्रणाली को सुधारने के लिए ठोस कदम उठाए जा सकें।