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भारत ने रूस से कोयले का आयात उच्चतम स्तर पर पहुँचाया

भारत ने मई 2025 में रूस से कोयले का आयात पिछले दो वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुँचाया है। यह कदम पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के बीच रियायती दरों पर कोयले की उपलब्धता का लाभ उठाने के लिए उठाया गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रवृत्ति न केवल द्विपक्षीय व्यापार को मजबूत करती है, बल्कि वैश्विक ऊर्जा समीकरणों में भी बदलाव का संकेत देती है। जानें इस महत्वपूर्ण विकास के पीछे के कारण और इसके संभावित प्रभाव।
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भारत ने रूस से कोयले का आयात उच्चतम स्तर पर पहुँचाया

भारत की ऊर्जा सुरक्षा में नया मोड़

भारत ने हाल ही में ऊर्जा सुरक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। मई 2025 में, भारत ने रूस से कोयले का आयात पिछले दो वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुँचाया। यह कदम पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के बीच रियायती दरों पर कोयले की उपलब्धता का लाभ उठाने के लिए उठाया गया है।


कॉमट्रेंड्ज़ (आईक्यू) के आंकड़ों के अनुसार, मई में भारत ने रूस से 2.9 मिलियन टन कोयले का आयात किया, जो अप्रैल के 2.6 मिलियन टन से अधिक है। यह आंकड़ा जुलाई 2022 के बाद का सबसे बड़ा मासिक आयात है। इस वृद्धि का मुख्य कारण रूस द्वारा दी जा रही छूटें हैं, जो वैश्विक बाजार में अपनी बिक्री को बनाए रखने के प्रयास में हैं।


भारत, जो दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी ऊर्जा उपभोक्ता अर्थव्यवस्था है, अपनी ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न स्रोतों से आपूर्ति की तलाश कर रहा है। घरेलू उत्पादन में वृद्धि के प्रयासों के बावजूद, बढ़ती आर्थिक गतिविधियों और बिजली की मांग को पूरा करने के लिए कोयले का आयात आवश्यक बना हुआ है। रूस, जो कोयले का सबसे बड़ा उत्पादक है, भारत के लिए एक महत्वपूर्ण विकल्प बन गया है।


विशेषज्ञों का मानना है कि इस बढ़ती निर्भरता के पीछे कई कारण हैं। रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों ने रूस को नए बाजारों की खोज और आकर्षक छूट देने के लिए मजबूर किया है। इसके अलावा, भारत की औद्योगिक मांग और बिजली की खपत में वृद्धि ने कोयले की आवश्यकता को बढ़ा दिया है, और रूसी कोयला एक लागत प्रभावी विकल्प प्रदान करता है।


यह प्रवृत्ति न केवल भारत और रूस के बीच व्यापारिक संबंधों को मजबूत करती है, बल्कि वैश्विक ऊर्जा समीकरणों में भी बदलाव का संकेत देती है। भारत के लिए यह ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाने का एक रणनीतिक कदम है, जबकि रूस के लिए यह पश्चिमी प्रतिबंधों के प्रभाव को कम करने का एक उपाय है। आने वाले समय में यह रुझान जारी रहने की संभावना है, क्योंकि भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विविधता पर जोर दे रहा है।