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भारत में चीनी उत्पादन की चुनौतियाँ और एथनॉल के विकल्प

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने चीनी उत्पादकों को अधिशेष उत्पादन की चुनौतियों का सामना करने के लिए एथनॉल और हरित हाइड्रोजन के विकल्पों पर ध्यान देने का सुझाव दिया है। उन्होंने बताया कि भारत को जीवाश्म ईंधन के आयात को कम करने की आवश्यकता है और किसानों को ऊर्जादाता के रूप में मान्यता देने की बात की। जानें इस विषय पर और क्या कहा गया।
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भारत में चीनी उत्पादन की चुनौतियाँ और एथनॉल के विकल्प

चीनी उत्पादन में विविधता लाने की आवश्यकता

केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने बृहस्पतिवार को चीनी उत्पादकों से आग्रह किया कि वे देश में बढ़ते अधिशेष चीनी उत्पादन को देखते हुए अपने कार्यों में विविधता लाएं। उन्होंने एथनॉल-डीजल मिश्रण और हरित हाइड्रोजन उत्पादन की संभावनाओं पर ध्यान देने की बात की।


उत्पादन लागत और बाजार मूल्य

इस्मा के भारतीय चीनी एवं जैव-ऊर्जा सम्मेलन 2025 में बोलते हुए, गडकरी ने कहा कि चीनी उत्पादन की लागत अब उसके बाजार मूल्य के बराबर हो गई है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि ब्राजील में भी चीनी उत्पादन बढ़ता है, तो यह भारत में समस्याएं उत्पन्न कर सकता है।


जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने की आवश्यकता

गडकरी ने बताया कि भारत जीवाश्म ईंधन के आयात पर 22 लाख करोड़ रुपये खर्च कर रहा है, जिससे प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो रही है। उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भरता के लिए, भारत को जीवाश्म ईंधन के आयात को कम करना होगा और बायोसीएनजी तथा एथनॉल-मिश्रित पेट्रोल के उत्पादन को बढ़ावा देना चाहिए।


किसानों की भूमिका

उन्होंने किसानों को केवल अन्नदाता नहीं, बल्कि ऊर्जादाता के रूप में मान्यता देने की बात की। गडकरी ने बताया कि जब किसानों ने मक्के से एथनॉल का उत्पादन शुरू किया, तो फसल की कीमतें 1,200 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 2,800 रुपये प्रति क्विंटल हो गईं। टूटे चावल और गन्ने से भी एथनॉल का उत्पादन संभव है।