भारत में दुर्लभ पृथ्वी चुम्बकों की आपूर्ति संकट: समाधान की तलाश

दुर्लभ पृथ्वी चुम्बकों का महत्व
दुर्लभ पृथ्वी चुम्बक (Rare Earth Permanent Magnets) आज के युग में इलेक्ट्रिक वाहनों (EV), नवीकरणीय ऊर्जा, रक्षा उपकरणों और इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए अत्यंत आवश्यक हो गए हैं। हालाँकि, भारत की अधिकांश आवश्यकताएँ चीन से आयात पर निर्भर हैं।
आयात में वृद्धि और चीन की निर्यात नीति
वित्तीय वर्ष 2024 में भारत ने लगभग 460 टन रेयर अर्थ मैग्नेट्स का आयात किया, जिसमें से अधिकांश चीन से आए। वित्तीय वर्ष 2025 में यह आंकड़ा 700 टन तक पहुँचने की संभावना है। हाल ही में, चीन ने अमेरिका के बाद भारत को भी इन चुम्बकों के निर्यात पर रोक लगाने के संकेत दिए हैं, जिससे देश की ऑटो और इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों में चिंता बढ़ गई है। कई कंपनियों ने चेतावनी दी है कि यदि आपूर्ति में सुधार नहीं हुआ, तो उत्पादन कुछ ही दिनों में रुक सकता है।
दुर्लभ पृथ्वी चुम्बक क्या हैं?
दुर्लभ पृथ्वी तत्वों में 17 तत्व शामिल हैं, जैसे स्कैन्डियम और इट्रियम। ये चुम्बक सामान्य चुम्बकों की तुलना में अधिक शक्तिशाली होते हैं और इनका उपयोग इलेक्ट्रिक वाहनों, मिसाइलों, रडार और अन्य आधुनिक उपकरणों में किया जाता है।
भारत के पास खनिज भंडार, लेकिन सीमित उपयोग
भारत के पास दुनिया के लगभग 6% रेयर अर्थ भंडार हैं। 1950 में भारत ने IREL (India Rare Earths Ltd) की स्थापना की थी, लेकिन इसे बड़े पैमाने पर विकसित नहीं किया जा सका। हालाँकि, अब सरकार ने 'राष्ट्रीय क्रिटिकल मिनरल मिशन' के तहत आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम उठाए हैं। IREL और भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) मिलकर विशाखापट्टनम में एक नया मैग्नेट उत्पादन संयंत्र स्थापित कर रहे हैं। इसकी वर्तमान क्षमता 3000 किलोग्राम प्रति वर्ष है, लेकिन BARC की वैज्ञानिक क्षमता इसे भविष्य में बढ़ा सकती है।
निजी और वैश्विक भागीदारी से नया रास्ता
गुजरात में Trafalgar Group एक संयंत्र स्थापित कर रही है, जो 2027 तक भारत की नियोडिमियम-आयरन-बोरॉन (NdFeB) मैग्नेट की 20% मांग को पूरा कर सकेगा। ये चुम्बक इलेक्ट्रिक वाहनों में उपयोग होते हैं। हैदराबाद की Midwest Advanced Materials को सरकार ने वित्तीय सहायता और तकनीकी मदद प्रदान की है, ताकि वह 500 टन प्रति वर्ष से शुरुआत कर 2030 तक 5000 टन प्रति वर्ष की क्षमता तक पहुँच सके।
विदेशी आपूर्ति की रणनीति
घरेलू उत्पादन के साथ-साथ भारत अब विदेशों से भी आपूर्ति सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहा है। खानिज विदेश इंडिया लिमिटेड (Khanij Bidesh India Ltd) ने दक्षिण अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और मध्य एशिया में साझेदारी की है। कज़ाखस्तान, जो 17 में से 15 रेयर अर्थ खनिजों का भंडार रखता है, भारत का एक प्रमुख भागीदार बनकर उभरा है। इससे भारत को लंबे समय तक एक स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित हो सकती है।
जापानी कंपनियों से सहयोग की संभावना
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को जापानी कंपनियों के साथ साझेदारी करनी चाहिए, जो खुद चीन से सबसे ज्यादा रेयर अर्थ चुम्बक आयात करती हैं। इससे तकनीकी ज्ञान और उत्पादन क्षमता दोनों को बढ़ाया जा सकता है।