भारत में भिक्षावृत्ति: एक जीविका बनती समस्या
भिक्षावृत्ति की बढ़ती समस्या
जब किसी व्यक्ति के पास आजीविका का कोई साधन नहीं होता और भविष्य में काम की कोई संभावना नहीं दिखती, तो वह उस स्थिति में पहुंच जाता है जहां उसे पेट की भूख मिटाने के लिए भीख मांगने पर मजबूर होना पड़ता है। भारत में लाखों लोग ऐसे हैं जिनकी सुबह एक कटोरी के साथ शुरू होती है और शाम को उसी कटोरी के खाली या भरे होने पर समाप्त होती है। हालांकि, यह सच नहीं है कि हर कोई मजबूरी में भीख मांग रहा है; अब यह कुछ लोगों के लिए पेशा और दूसरों के लिए आदत बन चुका है।आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, भारत में लगभग चार लाख लोग भीख मांगकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। इनमें पुरुषों की संख्या अधिक है, लेकिन लगभग दो लाख महिलाएं भी इस स्थिति का सामना कर रही हैं। चिंता की बात यह है कि फुटपाथों, ट्रैफिक सिग्नलों और धार्मिक स्थलों पर बच्चे भी कटोरी लेकर बैठे मिलते हैं। छोटी उम्र, बड़ी जिम्मेदारियां और भूख की तीव्रता इस कड़वी सच्चाई का आधार है।
राज्यों में भिक्षावृत्ति की स्थिति
पश्चिम बंगाल उन राज्यों में सबसे ऊपर है जहां भिखारियों की संख्या सबसे अधिक है, यहां लगभग 89 हजार लोग भीख पर निर्भर हैं। इसके बाद उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान का स्थान है। दूसरी ओर, लक्षद्वीप और चंडीगढ़ में भिखारियों की संख्या सबसे कम है, जहां लक्षद्वीप में केवल 2 और चंडीगढ़ में 121 भिखारी हैं।
उत्तर प्रदेश में भिक्षावृत्ति
उत्तर प्रदेश में लगभग 65 हजार लोग भीख मांगकर जीवन यापन कर रहे हैं। इस सूची में कानपुर सबसे ऊपर है, जहां 460 से अधिक भिखारी शहरी क्षेत्रों में पाए गए हैं। इसके बाद आगरा और सहारनपुर आते हैं, जहां भिखारियों की संख्या 100 से अधिक है। मथुरा और वृंदावन की सड़कों पर भी आपको हर मंदिर के बाहर और चौराहों पर बड़ी संख्या में भिखारी मिलेंगे, जिनमें से कई वर्षों से वहीं रह रहे हैं।