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भारतीय छात्रों के लिए अमेरिका में पढ़ाई का खर्च बढ़ा, रुपये की गिरावट का असर

भारतीय रुपये में हालिया गिरावट ने अमेरिका में पढ़ाई का खर्च बढ़ा दिया है, जिससे छात्रों और उनके परिवारों पर आर्थिक बोझ बढ़ गया है। 2026 में पढ़ाई शुरू करने वाले छात्रों को ट्यूशन फीस में अतिरिक्त 3.3 लाख रुपये चुकाने होंगे। इस स्थिति ने छात्रों की प्राथमिकताओं को बदल दिया है, और कई अब भारत में पढ़ाई करने पर विचार कर रहे हैं। रिपोर्टों के अनुसार, अमेरिका में उच्च शिक्षा के लिए जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में 44 प्रतिशत की कमी आई है। जानें इस मुद्दे पर और क्या कह रहे हैं विशेषज्ञ।
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भारतीय छात्रों के लिए अमेरिका में पढ़ाई का खर्च बढ़ा, रुपये की गिरावट का असर

भारतीय रुपये में अस्थायी सुधार, लेकिन चिंता बनी हुई है

नई दिल्ली: हाल के कारोबारी दिनों में डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये में थोड़ी सुधार देखने को मिली है, लेकिन यह राहत अस्थायी मानी जा रही है। इस हफ्ते रुपये ने गिरावट का नया रिकॉर्ड बनाते हुए 91 के मनोवैज्ञानिक स्तर को पार कर लिया था। हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा बैंकों के माध्यम से डॉलर की बिक्री के बाद मुद्रा में थोड़ी स्थिरता आई है, लेकिन इस साल रुपये में अब तक 5 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आ चुकी है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक अमेरिका और भारत के बीच कोई नया व्यापार समझौता नहीं होता, रुपये की कमजोरी बनी रह सकती है। मजबूत डॉलर आईटी और फार्मा कंपनियों के लिए फायदेमंद है, लेकिन विदेश में पढ़ाई करने के इच्छुक भारतीय छात्रों और उनके परिवारों के लिए यह एक बड़ा आर्थिक झटका है।


छात्रों पर बढ़ा आर्थिक बोझ

रुपये की गिरावट का सीधा असर उन छात्रों पर पड़ने वाला है जो जनवरी 2026 के वसंत सत्र से अपनी पढ़ाई शुरू करने की योजना बना रहे हैं। 2025 में रुपये में आई लगभग 6 प्रतिशत की गिरावट के कारण, 55,000 डॉलर की ट्यूशन फीस वाले कोर्स के लिए छात्रों को अब लगभग 3.3 लाख रुपये अतिरिक्त चुकाने होंगे। यदि इसमें सालाना रहने का खर्च (लगभग 15,000 डॉलर) भी जोड़ दिया जाए, तो कुल खर्च बढ़कर 4.11 लाख रुपये तक पहुंच सकता है। हालांकि, यह अतिरिक्त खर्च विभिन्न शहरों और विश्वविद्यालयों की फीस के आधार पर भिन्न हो सकता है।


अमेरिका में पढ़ाई करने वाले छात्रों की संख्या में कमी

बढ़ती लागत और अनिश्चितताओं का असर अब आंकड़ों में भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार, अगस्त 2024 की तुलना में अगस्त 2025 में उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में 44 प्रतिशत की कमी आई है। यह महामारी के बाद की सबसे बड़ी गिरावट है। जानकारों का मानना है कि इस रुझान के पीछे केवल गिरता रुपया ही नहीं, बल्कि वीजा नियमों में बदलाव और अमेरिका में बढ़ता एंटी-इमिग्रेशन माहौल भी जिम्मेदार है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि रुपये की कमजोरी ने छात्रों के विदेश जाने के सपने को पूरी तरह से खत्म नहीं किया है, बल्कि उन्हें और सतर्क कर दिया है।


परिवारों की आर्थिक योजनाओं में बदलाव

महंगाई के इस दौर में भारतीय परिवार अब अपनी आर्थिक योजनाओं को लेकर अधिक सतर्क हो गए हैं। एक विशेषज्ञ के अनुसार, परिवार अब अपने बजट की 'स्ट्रेस टेस्टिंग' कर रहे हैं और अमेरिकी डॉलर में लिए जाने वाले लोन और ट्यूशन फीस के लिए 'लॉक-इन' विकल्पों में रुचि दिखा रहे हैं। ये विकल्प उन्हें भविष्य में करेंसी के उतार-चढ़ाव से बचाने में मदद करते हैं। परिवार अब पहले से ज्यादा बेहतर योजना बना रहे हैं और करेंसी की अस्थिरता को ध्यान में रखकर ही कोई निर्णय ले रहे हैं।


छात्रों की प्राथमिकताओं में बदलाव

महंगी पढ़ाई और सख्त नियमों के चलते अब छात्रों की प्राथमिकताएं भी बदल रही हैं। कई छात्र अब ऐसी डिग्रियों को चुन रहे हैं जो सीधे रोजगार की गारंटी देती हों या फिर वे ऐसे देशों का रुख कर रहे हैं जहां पढ़ाई के बाद वर्क वीजा के नियम स्पष्ट हों। इसके अलावा, बढ़ती लागत ने कई छात्रों को भारत में ही पढ़ाई करने के लिए प्रेरित किया है। एक विश्वविद्यालय के कुलपति के अनुसार, परिवार अब आत्मचिंतन कर रहे हैं और छात्र यह सवाल पूछने लगे हैं कि विदेश जाने से उन्हें वास्तव में क्या हासिल होगा। भारतीय विश्वविद्यालयों में रिसर्च और अकादमिक गुणवत्ता में सुधार ने भी छात्रों को देश में रुकने का एक मजबूत कारण दिया है।