भारतीय पासपोर्ट की नई ऊँचाई: 59 देशों में वीज़ा मुक्त यात्रा

भारतीय नागरिकों के लिए वीज़ा मुक्त यात्रा का विस्तार
अब भारतीय नागरिक 59 देशों में बिना पूर्व वीज़ा के यात्रा कर सकते हैं, जबकि पिछले वर्ष यह संख्या 57 थी। इस बार फ़िलीपींस और श्रीलंका जैसे देशों को भी इस सूची में शामिल किया गया है। यह सुविधा न केवल यात्रियों के लिए सहूलियत प्रदान करती है, बल्कि व्यापार, शिक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के नए अवसर भी खोलती है। वीज़ा की जटिल और महंगी प्रक्रिया अब कई देशों में बाधा नहीं बन रही है।
हेनले पासपोर्ट इंडेक्स 2025 में भारत ने उल्लेखनीय प्रगति की है। पिछले वर्ष की 85वीं रैंक से उभरकर, भारतीय पासपोर्ट अब 77वें स्थान पर है। यह केवल एक संख्या नहीं है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भारत की स्वीकार्यता और ताकत का प्रतीक है। इसका सीधा लाभ भारतीय नागरिकों को यात्रा की सुविधा के रूप में मिल रहा है—यह भारत की अर्थव्यवस्था, कूटनीति और वैश्विक प्रभाव के लिए भी सकारात्मक संकेत है।
हेनले पासपोर्ट इंडेक्स एक वैश्विक मानक है, जो यह दर्शाता है कि किसी देश के नागरिक बिना वीज़ा या वीज़ा-ऑन-अराइवल के कितने देशों की यात्रा कर सकते हैं। भारतीय पासपोर्ट में सुधार यह दर्शाता है कि अब हमारे नागरिक 59 देशों में बिना पूर्व वीज़ा के यात्रा कर सकते हैं। पिछले वर्ष यह संख्या 57 थी। इस सूची में फ़िलीपींस और श्रीलंका जैसे देश भी शामिल हुए हैं।
यह बढ़ी हुई पहुंच न केवल यात्रियों के लिए सहूलियत है, बल्कि व्यापार, शिक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के नए द्वार भी खोलती है। वीज़ा की लंबी, खर्चीली और जटिल प्रक्रिया अब कई देशों में बाधा नहीं रही। इससे आकस्मिक यात्राएं आसान होती हैं, व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल तेजी से विदेश जा सकते हैं, और छात्र व शोधकर्ता भी नए अवसरों तक पहुंच बना सकते हैं। विदेशी निवेशकों के लिए भी यह एक सकारात्मक संकेत है कि भारत एक खुली, जुड़ने लायक़ अर्थव्यवस्था है।
इस सुधार के पीछे कई कारक हैं। भारत सरकार ने पिछले वर्षों में विभिन्न देशों के साथ वीज़ा नीति पर द्विपक्षीय संवाद किया है, जो अब रंग ला रहा है। विदेश मंत्रालय की सक्रिय कूटनीति और रणनीतिक साझेदारियों ने वीज़ा-संबंधी नीतियों को उदार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। साथ ही, भारत की तेज़ आर्थिक प्रगति और वैश्विक मंच पर उसकी भूमिका भी कारण है कि दुनिया भारत के साथ संबंध प्रगाढ़ करने के लिए तत्पर दिखती है।
किसी भी देश की पासपोर्ट रैंकिंग उसकी राजनीतिक स्थिरता और आंतरिक सुरक्षा से भी जुड़ी होती है। भारत ने पिछले कुछ वर्षों में अपने आंतरिक सुरक्षा ढांचे को मज़बूत किया है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अपनी स्थिर छवि बनाई है। डिजिटल पासपोर्ट सेवा प्रणाली ने इस प्रक्रिया को और पारदर्शी और कुशल बनाया है, जिससे नागरिकों के लिए पासपोर्ट प्राप्त करना और उपयोग करना अधिक सहज हो गया है।
कोविड-19 महामारी के कारण वैश्विक यात्रा पर जो ब्रेक लगा था, वह अब धीरे-धीरे हट रहा है। देशों के बीच द्विपक्षीय समझौते फिर से सक्रिय हो रहे हैं, और वैश्विक गतिशीलता में फिर से संचार हो रहा है। यही रुझान पासपोर्ट रैंकिंग में सुधार का आधार भी बने हैं।
हालांकि, इस बढ़ती ताक़त को स्थायी बनाना और आगे बढ़ाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। विदेश मंत्रालय को चाहिए कि उन देशों से सतत संवाद बनाए रखे जहाँ भारतीय नागरिकों को अब भी सख्त वीज़ा नियमों का सामना करना पड़ता है—विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ भारतीय छात्रों, कारोबारियों और सैलानियों की बड़ी उपस्थिति है।
एक मज़बूत अर्थव्यवस्था मज़बूत पासपोर्ट की बुनियाद होती है। इसलिए भारत को अपनी आर्थिक वृद्धि दर बनाए रखनी होगी, अंतरराष्ट्रीय संधियों और नियमों का पालन करना होगा, ताकि वैश्विक विश्वसनीयता और अधिक गहरी हो।
भारत को उन देशों से भी संवाद बढ़ाना चाहिए जो ई-वीज़ा या वीज़ा-ऑन-अराइवल जैसी सुविधाएं नहीं देते। यह यात्रा को न सिर्फ सुविधाजनक बनाता है, बल्कि विदेशों में भारत की सकारात्मक छवि को भी मज़बूत करता है। साथ ही सरकार को पासपोर्ट धारकों को यह जानकारी भी देनी चाहिए कि वे किन देशों में बिना वीज़ा यात्रा कर सकते हैं। सार्वजनिक जागरूकता अभियानों, विदेश मंत्रालय की वेबसाइट, और राजदूतावासों की जानकारी प्रणाली को इसके लिए बेहतर बनाया जा सकता है।
‘अतिथि देवो भव’ की भारत की परंपरा भी हमारी ‘सॉफ़्ट पावर’ को मज़बूत करती है। जब विदेशी नागरिक भारत आते हैं और यहां की संस्कृति, विविधता और उदारता से प्रभावित होते हैं, तो उनकी सरकारों पर भी भारत के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने का दबाव बनता है। इससे वीज़ा संबंधी उदारता भी बढ़ती है।
बेशक, पासपोर्ट रैंकिंग में यह प्रगति एक महत्वपूर्ण पड़ाव है, पर लक्ष्य अभी और बड़ा है। भारत की विदेश नीति पर हालांकि विशेषज्ञों की राय अलग-अलग है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के संदर्भ में देखा जाए, तो आलोचक यह प्रश्न उठाते हैं कि उस समय कोई भी वैश्विक शक्ति खुलकर भारत के साथ खड़ी नहीं दिखी।
वहीं, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कई बार यह दावा कर चुके हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम उनके हस्तक्षेप से ही हुआ। हालांकि भारत सरकार ने उनके इस बयान का बार-बार खंडन किया है। ऐसे मामलों से यह स्पष्ट होता है कि भारत की विदेश नीति केवल भावनाओं पर नहीं, बल्कि आर्थिक प्राथमिकताओं और भू-राजनीतिक संतुलनों पर आधारित होती है।
भारत एक ऐसा देश है, जिसे अमेरिका, रूस और चीन सभी अपनी रणनीति में शामिल रखना चाहते हैं। भारत के विशाल बाज़ार, उसकी रणनीतिक स्थिति और वैश्विक महत्व ने उसे एक अनिवार्य साझेदार बना दिया है—लेकिन इसके साथ ही चुनौतियाँ भी उतनी ही जटिल हैं। पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति और चीन के साथ शक्ति-संतुलन बनाए रखने की ज़रूरत के बीच भारत को सावधानी से अपने हितों की रक्षा करनी होती है।
अतः, भारतीय पासपोर्ट की यह नई प्रतिष्ठा केवल एक तकनीकी उपलब्धि नहीं है—यह भारत की विश्व छवि, उसकी विदेश नीति, उसकी अर्थव्यवस्था और उसके नागरिकों के आत्मविश्वास की संयुक्त अभिव्यक्ति है। इसे बनाए रखना और आगे बढ़ाना हमारी समष्टि और संकल्प दोनों का परीक्षण होगा।