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महाभारत में भोजन की व्यवस्था: उडुपी के राजा की कहानी

महाभारत के युद्ध में उडुपी के राजा पेरूंजोत्रुथियन ने भोजन की व्यवस्था की जिम्मेदारी ली। जानें कैसे उन्होंने भगवान कृष्ण की मदद से युद्ध के दौरान भोजन की कमी को रोका और योद्धाओं की भूख मिटाई। यह कहानी न केवल युद्ध की चुनौतियों को दर्शाती है, बल्कि समर्पण और ईमानदारी के महत्व को भी उजागर करती है।
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महाभारत का युद्ध और भोजन की व्यवस्था

महाभारत का युद्ध एक विशाल संघर्ष था, जिसमें लाखों योद्धाओं ने अपनी जान गंवाई। फिर भी, हर दिन नए योद्धा युद्ध के लिए तैयार होते थे। युद्ध भले ही सूर्यास्त के समय समाप्त हुआ, लेकिन इसकी गूंज कुरुक्षेत्र की कुटियाओं में बनी रही। ऐसे में भोजन की व्यवस्था कौन कर रहा था? महाभारत की कथा के अनुसार, उडुपी के राजा पेरूंजोत्रुथियन ने इस जिम्मेदारी को अपने कंधों पर लिया था। उनका भोजन इतना सटीक था कि कोई भी योद्धा एक दिन भी भूखा नहीं रहता था और न ही भोजन बर्बाद होता था। आइए जानते हैं कि उन्हें यह जिम्मेदारी कैसे मिली।


महाभारत की मुख्य कथा के साथ-साथ कई उप-कथाएँ भी हैं जो शिक्षाप्रद हैं। यह कथा हमें सिखाती है कि भोजन की व्यवस्था कैसे की जाए, उसका सही उपयोग कैसे किया जाए और उसे बर्बाद होने से कैसे रोका जाए। जब कुरुक्षेत्र की रणभूमि का चयन किया गया, तो भगवान कृष्ण सहित कौरव और पांडव जानते थे कि इस युद्ध में लाखों योद्धा शामिल होंगे। भगवान कृष्ण ने अपनी दूरदर्शिता से योद्धाओं को कई महत्वपूर्ण बातें बताईं, जिनमें भोजन की व्यवस्था का विषय भी शामिल था। जब यह जानकारी उडुपी के राजा पेरुंजोत्रुथियन तक पहुँची, तो उन्होंने भगवान कृष्ण से मिलने का निर्णय लिया।


राजा ने भगवान कृष्ण से निवेदन किया कि वे युद्ध में भाग नहीं लेंगे, लेकिन महाभारत के योद्धाओं के लिए भोजन की व्यवस्था अवश्य करेंगे। हर शाम भोजन बनाने की योजना बनाई जाती थी। कुरुक्षेत्र में प्रतिदिन हजारों योद्धा मारे जाते थे, जिससे अगले दिन के लिए भोजन की मात्रा का अनुमान लगाना कठिन हो जाता था। नए योद्धा लगातार युद्ध में शामिल होते रहते थे। इसलिए, राजा ने भोजन पकाने के लिए भगवान कृष्ण से मार्गदर्शन मांगा।


जब राजा अपनी समस्या लेकर श्री कृष्ण के पास गए, तो उन्होंने हाथ जोड़कर पूछा कि अगले दिन कितना भोजन पकाना चाहिए। श्री कृष्ण ने मुस्कुराते हुए मूंगफली खाना शुरू किया। राजा ने समझा कि श्री कृष्ण की मुस्कान के पीछे कोई गहरा अर्थ है।


उडुपी के राजा ने श्री कृष्ण की मुस्कान और मूंगफली खाने के पीछे का रहस्य समझ लिया। उन्होंने अनुमान लगाया कि अगले दिन युद्ध में श्री कृष्ण जितने योद्धा खाएँगे, उतने ही मारे जाएँगे। उदाहरण के लिए, यदि श्री कृष्ण ने दस मूंगफली खाईं, तो अगले दिन दस हजार योद्धा मारे जाएँगे। इसका अर्थ था कि श्री कृष्ण स्वयं काल का रूप धारण करके उन योद्धाओं को निगल जाएँगे। इस प्रकार, राजा ने भोजन बनाते समय इस बात का ध्यान रखा। शायद यही कारण था कि 18 दिनों तक चले इस युद्ध में न तो अन्न की कमी हुई और न ही अन्न की बर्बादी। राजा ने ईमानदारी से काम करके और कृष्ण के प्रति समर्पण दिखाकर सफलता प्राप्त की। यही संदेश है कि यदि हमें भी सफलता प्राप्त करनी है, तो कृष्ण के प्रति समर्पण करना चाहिए।