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मानसरोवर यात्रा: हिलसा से तिब्बत तक की सांस्कृतिक यात्रा

मानसरोवर यात्रा के दौरान हिलसा से तिब्बत तक का सफर न केवल भौगोलिक था, बल्कि इसमें गहरी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक भावनाएं भी शामिल थीं। 14,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित हिलसा में करनाली नदी बहती है, जो भारत में सरयू के रूप में जानी जाती है। तिब्बत में प्रवेश करते ही माहौल बदल जाता है, जहां चीनी अधिकारियों की सख्ती और दलाई लामा के प्रति श्रद्धा का अनुभव होता है। जानें इस यात्रा के दौरान तिब्बती लोगों की भावनाएं और भारत के प्रति उनका सम्मान।
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मानसरोवर यात्रा: हिलसा से तिब्बत तक की सांस्कृतिक यात्रा

मानसरोवर यात्रा का अनुभव

जब हम नेपाल के सिमिकोट से हेलीकॉप्टर के माध्यम से हिलसा पहुंचे, तो यह यात्रा केवल भौगोलिक नहीं थी, बल्कि इसमें सांस्कृतिक और आध्यात्मिक भावनाओं का भी समावेश था। 14,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस छोटे से गांव हिलसा में करनाली नदी बहती है, जो मानसरोवर से निकलकर भारत में सरयू के नाम से जानी जाती है। सरयू और राम का यह संबंध कैलास से रामेश्वरम तक शिव और राम के बीच की गहरी सांकेतिकता को दर्शाता है.


तिब्बत में प्रवेश

हिलसा पार करने के बाद जब हम तिब्बत के तकलाकोट पहुंचे, तो वहां चीन की सीमा में कदम रखते ही माहौल पूरी तरह से बदल गया। सीमा पर कस्टम जांच के दौरान हमें सख्त चीनी अधिकारियों का सामना करना पड़ा। दलाई लामा का नाम लेना भी वहां एक अपराध माना जाता है। लेकिन जब हमारे ड्राइवर ने ‘बम भोले, हर-हर महादेव’ के नारे लगाए, तो दिल में एक अलग ही भावना जाग उठी। देवनागरी नहीं जानने के बावजूद गांव के बच्चे और लोग ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करते हैं, जो तिब्बत और भारत के बीच सांस्कृतिक संबंध की गहराई को दर्शाता है.


तकलाकोट का व्यापारिक माहौल

भारत के प्रति तिब्बत का सम्मान

तकलाकोट सुरक्षा के लिहाज से एक संवेदनशील स्थान है, लेकिन यहां तिब्बती, नेपाली और भारतीय व्यापारियों की दुकानें भी हैं। पहले यहां भारतीय व्यापारियों का वर्चस्व था, लेकिन 1962 की लड़ाई के बाद स्थिति बदल गई। आज भी कुछ भारतीय दुकानें यहां मौजूद हैं। हमें नेपाल से आए गाइड और खानसामा मिले, जो हमें चीनी दुकानों से सावधान रहने की सलाह देते रहे.


चीन के प्रति तिब्बती लोगों की भावना

चीन के लिए डर — एक अनुभव की कहानी

तिब्बती लोग, विशेषकर हमारे ड्राइवर गुंफा दोरजी, चीन के प्रति गहरे आक्रोश से भरे हुए थे। दलाई लामा के प्रति उनकी श्रद्धा और तिब्बत की स्वतंत्रता की भावना आज भी जीवित है। यह आस्था एक दिन विद्रोह की चिंगारी बन सकती है। तिब्बती महिलाएं यहां घर, दुकान और बच्चों की देखभाल में पुरुषों से अधिक जिम्मेदारी निभा रही थीं.


तिब्बत की आत्मा और भारत का संबंध

दलाई लामा की चर्चा पर सख्त हुआ चीन

तकलाकोट का यह अनुभव स्पष्ट करता है कि भले ही तिब्बत राजनीतिक रूप से चीन के अधीन हो, लेकिन उसकी आत्मा अब भी भारत के साथ जुड़ी हुई है। जब वहां के बच्चे ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे कैलास की गोद में भारत की संस्कृति की गूंज निरंतर चल रही है.