मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने किडनी रोग की प्रगति का अनुमान लगाने में की महत्वपूर्ण खोज

क्रोनिक किडनी रोग का नया परीक्षण
मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने क्रोनिक किडनी रोग (CKD) की प्रगति का अनुमान लगाने के लिए एक नई विधि की खोज की है। हालिया अध्ययन में, एक साधारण रक्त या मूत्र परीक्षण से यह पता लगाया जा सकता है कि CKD कितनी तेजी से बढ़ेगा। शोधकर्ताओं ने किडनी इंजरी मॉलिक्यूल-1 (KIM-1) नामक एक महत्वपूर्ण जैविक संकेतक की पहचान की है, जो गुर्दे की क्षति को दर्शाता है।KIM-1: मृत्यु और किडनी फेलियर का संकेतक
मैनचेस्टर विश्वविद्यालय की टीम ने यह पाया है कि रक्त और मूत्र में KIM-1 के उच्च स्तर का संबंध मृत्यु दर और किडनी फेलियर के बढ़ते जोखिम से है। यह खोज मौजूदा सामान्य परीक्षणों से आगे बढ़कर CKD के अंतर्निहित जैविक परिवर्तनों को उजागर करती है, जो बीमारी की प्रगति को प्रभावित करते हैं।
नए परीक्षण की उपयोगिता
अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ. थॉमस मैकडॉनेल ने कहा, "क्रोनिक किडनी रोग की प्रगति व्यक्तियों में बहुत भिन्न होती है, जिससे यह अनुमान लगाना कठिन हो जाता है कि कौन से रोगी किडनी फेलियर का सामना करेंगे।" उन्होंने आगे कहा, "हमारा शोध सरल रक्त या मूत्र परीक्षणों के विकास की संभावना को बढ़ाता है, जो जोखिम का बेहतर अनुमान लगाने में मदद कर सकता है। यह जानकारी डॉक्टरों और रोगियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।"
अध्ययन की प्रमुख बातें
यह खोज CKD के प्रबंधन और उपचार में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है, जिससे चिकित्सकों को उच्च जोखिम वाले रोगियों की पहचान करने और समय पर लक्षित उपचार प्रदान करने में सहायता मिलेगी।