Newzfatafatlogo

राजस्थान में सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए भूमि आवंटन से स्थानीय निवासियों में आक्रोश

राजस्थान के बाड़मेर और जैसलमेर जिलों में सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए भूमि आवंटन ने स्थानीय निवासियों में भारी आक्रोश पैदा कर दिया है। ओरण और चारागाहों की भूमि का निजी कंपनियों को आवंटन, पशुधन के लिए चारे की कमी और स्थानीय लोगों की दैनिक आवश्यकताओं को प्रभावित कर रहा है। यह स्थिति न केवल वर्तमान जीवनशैली को बाधित कर रही है, बल्कि भविष्य में सामाजिक और पर्यावरणीय असंतुलन का कारण बन सकती है। जानें इस मुद्दे की गहराई और इसके संभावित समाधान।
 | 

सौर ऊर्जा परियोजनाओं का प्रभाव

राजस्थान के बाड़मेर और जैसलमेर जिलों में निवासियों के बीच इन दिनों गहरा आक्रोश देखने को मिल रहा है। इसका मुख्य कारण है उनकी जीवनरेखा मानी जाने वाली ओरण और चारागाहों की सार्वजनिक भूमि का सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए निजी कंपनियों को अत्यधिक आवंटन। इस रेगिस्तानी क्षेत्र की भूमि, जिस पर स्थानीय जनजीवन और पशुधन निर्भर करते थे, अब विशाल सोलर पैनलों से भर गई है। इससे पशुओं के चारे की गंभीर कमी और स्थानीय लोगों के लिए कई समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं। यह केवल जनता की समस्याओं का मामला नहीं है, बल्कि भूमि आवंटन से जुड़ी गंभीर प्रशासनिक और नीतिगत चिंताओं का भी है।


विधानसभा में प्रस्तुत दस्तावेजों के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में राज्य में 157343 बीघा भूमि विभिन्न कंपनियों को सौर ऊर्जा संयंत्रों के लिए आवंटित की जा चुकी है। यह आंकड़ा चौंकाने वाला है। विशेष रूप से, जैसलमेर में 2018 से 2023 के बीच 70500 बीघा भूमि कंपनियों को दी गई, जिसमें अडानी रिन्युएबल एनर्जी पार्क लिमिटेड को 42500 बीघा भूमि आवंटित की गई। यह दर्शाता है कि कैसे बड़े औद्योगिक घरानों को सरकारी भूमि का एक बड़ा हिस्सा दिया जा रहा है।


हाल के घटनाक्रमों में, 8 मार्च 2024 को बीकानेर में लगभग 8500 बीघा भूमि विभिन्न सोलर परियोजनाओं के लिए आवंटित करने की घोषणा की गई। इसके बाद, 16 जून 2024 को बीकानेर में 2450 मेगावाट के तीन और फलोदी जिले में 500 मेगावाट के सोलर प्लांट्स के लिए लगभग 56000 बीघा भूमि का और आवंटन हुआ। अडानी के अलावा, लार्सन एंड टूब्रो, एस्सेल सौर्य ऊर्जा और एसबीई रिन्युएबल एनर्जी जैसी अन्य बड़ी कंपनियों को भी यह भूमि दी गई है।


ये सभी आवंटन राजस्थान सरकार के अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में 13.12 लाख करोड़ रुपये के समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर करने के बाद हुए हैं, जो 2015 से 2024 तक की अवधि के लिए हैं।


इन विशाल भूमि आवंटनों का सीधा असर स्थानीय समुदायों पर पड़ रहा है। ओरण और चारागाह, जो पारंपरिक रूप से पशुधन के लिए महत्वपूर्ण थे, अब सोलर पार्कों में बदल रहे हैं। इससे पशुओं के लिए चारे की गंभीर कमी हो गई है, जिससे पशुपालकों की आजीविका पर संकट आ गया है। स्थानीय लोगों को अपनी दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने में भी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि उनके पारंपरिक रास्ते और जल स्रोत भी प्रभावित हो रहे हैं।


यह स्थिति न केवल मौजूदा जीवनशैली को बाधित कर रही है, बल्कि भविष्य में इस क्षेत्र में बड़े सामाजिक और पर्यावरणीय असंतुलन पैदा कर सकती है। सरकार को इन आवंटनों की समीक्षा करनी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि विकास परियोजनाओं का लाभ स्थानीय समुदायों को भी मिले, न कि केवल बड़े कॉर्पोरेट घरानों को।