रात में रोशनी में सोने के स्वास्थ्य पर प्रभाव
रात में रोशनी में सोने की आदत
नई दिल्ली: कई लोग रात में हल्की रोशनी या जलते बल्ब के साथ सोना पसंद करते हैं। उनका मानना है कि इससे डर कम होता है और नींद जल्दी आती है। लेकिन स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि यह आदत लंबे समय में स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती है, विशेषकर दिल के लिए। आइए, इस आदत के संभावित नुकसान पर चर्चा करते हैं।
दिल की सेहत पर नकारात्मक प्रभाव
विशेषज्ञों का मानना है कि मानव शरीर एक प्राकृतिक जैविक घड़ी पर कार्य करता है। अंधेरे में, मस्तिष्क मेलाटोनिन नामक हार्मोन का उत्पादन करता है, जो गहरी और स्वस्थ नींद के लिए आवश्यक है। जब आप रोशनी में सोते हैं, तो मेलाटोनिन का स्तर कम हो जाता है, जिससे नींद हल्की और बार-बार टूटने लगती है।
हालांकि कोई व्यक्ति कई घंटों तक सोता है, लेकिन शरीर को पर्याप्त आराम नहीं मिलता। खराब नींद की गुणवत्ता सीधे दिल की सेहत को प्रभावित करती है। गहरी नींद की कमी से शरीर में तनाव हार्मोन कोर्टिसोल का स्तर बढ़ता है, जो उच्च रक्तचाप और तेज दिल की धड़कन का कारण बन सकता है। समय के साथ, यह दिल पर अतिरिक्त दबाव डालता है, जिससे दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ता है।
ब्लड शुगर लेवल में वृद्धि
रोशनी में सोने से शरीर की इंसुलिन संवेदनशीलता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसका अर्थ है कि शरीर शुगर को सही तरीके से प्रोसेस नहीं कर पाता, जिससे ब्लड शुगर का स्तर बढ़ सकता है। इसके परिणामस्वरूप वजन बढ़ने और कोलेस्ट्रॉल के स्तर में वृद्धि हो सकती है, जो दिल की समस्याओं के जोखिम को बढ़ाते हैं।
एरिथमिया का जोखिम
अनुसंधान से पता चला है कि रात में रोशनी के संपर्क में आने से दिल की इलेक्ट्रिकल गतिविधि प्रभावित हो सकती है। इससे दिल की धड़कन में असामान्यता, जिसे एरिथमिया कहा जाता है, का खतरा बढ़ सकता है। यदि यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहती है, तो यह गंभीर हो सकती है।
डॉक्टरों की सलाह है कि स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए अंधेरे कमरे में सोना चाहिए। यदि पूरी तरह से अंधेरा असहज लगता है, तो बिस्तर से थोड़ी दूरी पर एक हल्का नाइट लैंप रखना एक सुरक्षित विकल्प हो सकता है। सोने से पहले स्क्रीन का उपयोग कम करने से भी शरीर को नैचुरल मेलाटोनिन बनाने में मदद मिलती है।
