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रोहिणी व्रत: जानें पूजा विधि और महत्व

रोहिणी व्रत जैन धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो विशेष रूप से महिलाओं द्वारा अपने परिवार की भलाई के लिए मनाया जाता है। इस दिन भगवान वासुपूज्य की पूजा के साथ-साथ चंद्रमा की भी पूजा की जाती है। जानें इस व्रत का उद्देश्य, इसे कितने वर्षों तक करना चाहिए और पूजा विधि क्या है।
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रोहिणी व्रत: जानें पूजा विधि और महत्व

रोहिणी व्रत का महत्व


जैन धर्म में रोहिणी व्रत का विशेष महत्व
रोहिणी व्रत जैन धर्मावलंबियों के लिए एक महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन भगवान वासुपूज्य की पूजा की जाती है, साथ ही चंद्रमा की भी विशेष पूजा होती है। चंद्रमा का रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश इस दिन को खास बनाता है।


आज, यानी 7 नवंबर को, अगहन माह का रोहिणी व्रत मनाया जाएगा। यह व्रत जैन समुदाय के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है। आइए जानते हैं कि इस व्रत का उद्देश्य क्या है और इसे कितने वर्षों तक किया जाना चाहिए।


रोहिणी व्रत का उद्देश्य

यह व्रत मुख्यतः महिलाएं अपने परिवार और संतान की भलाई के लिए करती हैं। महिलाएं इस दिन निर्जला या फलाहार व्रत रखकर सुख-समृद्धि और दीर्घायु की कामना करती हैं। यह व्रत हर महीने एक बार आता है, लेकिन विशेष तिथियों पर इसका महत्व और बढ़ जाता है।


रोहिणी व्रत की अवधि

जैन धर्म में रोहिणी व्रत को प्रमुख व्रतों में से एक माना जाता है। इसे रोहिणी नक्षत्र के दिन किया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति कर्म बंधन से मुक्त होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसे लगातार 3, 5, या 7 वर्षों तक करना चाहिए। पारण अनुष्ठान के बाद ही यह व्रत पूर्ण होता है।


रोहिणी व्रत की पूजा विधि

ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और गंगाजल मिलाकर आचमन करें। फिर व्रत का संकल्प लें और सूर्य को जल अर्पित करें। पूजा स्थल की सफाई करें और भगवान वासुपूज्य की प्रतिमा स्थापित करें। उन्हें फल, फूल, गंध, दूर्वा, और नैवेद्य अर्पित करें। सूर्यास्त से पहले पूजा करें और फलाहार करें। अगले दिन पूजा के बाद व्रत का पारण करें और गरीबों को दान देना न भूलें।