विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अकेलेपन को वैश्विक स्वास्थ्य संकट घोषित किया

अकेलेपन का गंभीर संकट
Editorial | डॉ. राजेंद्र प्रसाद शर्मा | विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अकेलेपन को एक गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य संकट के रूप में मान्यता दी है। यह तथ्य चिंताजनक है कि अकेलेपन के कारण हर घंटे 100 लोग अपनी जान गंवा देते हैं। यह आंकड़ा दर्शाता है कि अकेलेपन के प्रभाव को हल्के में लेना एक बड़ी गलती होगी, क्योंकि हर साल लगभग 8 लाख 71 हजार लोग अकेलेपन के कारण मरते हैं। डब्ल्यूएचओ ने इसे मोटापे, शराब के सेवन और धूम्रपान के समान स्वास्थ्य संकट के रूप में वर्गीकृत किया है।
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट
डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी 'फ्रॉम लोनलीनेस टू सोशल कनेक्शन' रिपोर्ट इस समस्या की गंभीरता को उजागर करती है। गैलप और मेटा की रिपोर्ट भी इसी तरह की चिंताएं व्यक्त करती हैं। आज के युवा और वृद्ध दोनों ही अकेलेपन का सामना कर रहे हैं, और कोरोना महामारी के बाद स्थिति और भी बिगड़ गई है। डिजिटल क्रांति ने अकेलेपन को बढ़ावा दिया है, जिससे सामाजिकता और समरसता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
संवाद की कमी
हालात यह हैं कि भले ही गगनचुंबी इमारतों में लोग रहते हैं, लेकिन आपसी संवाद की कमी है। आजकल संवाद केवल सोशल मीडिया तक सीमित रह गया है, जो तनाव का कारण बन रहा है। अकेलापन और अलगाव दोनों ही नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं। अकेलापन का मतलब है अकेले रहने का दुखद अनुभव, जबकि अलगाव का अर्थ है सामाजिक संपर्क की कमी।
डिजिटल युग में संवाद
डिजिटल युग में, परिवार के सदस्य एक ही कमरे में होते हुए भी संवाद केवल औपचारिकता तक सीमित रह गया है। मोबाइल फोन अब परिवार के सदस्यों के बीच संवाद का मुख्य साधन बन गया है। जब कोई सदस्य चर्चा शुरू करने की कोशिश करता है, तो ध्यान मोबाइल की स्क्रीन पर ही होता है।
परिवारिक संबंधों का क्षय
आजकल परिवारों में एकजुटता की कमी हो रही है। नौकरी के कारण संयुक्त परिवारों का ढांचा टूट रहा है, और पति-पत्नी दोनों कामकाजी होने के कारण बच्चों के साथ समय बिताने में असमर्थ हैं। इस स्थिति में, पारिवारिक संबंध कमजोर होते जा रहे हैं।
सामाजिक ताने-बाने में बिखराव
छोटे परिवारों के चलते पारिवारिक रिश्ते कमजोर हो रहे हैं। दादा-दादी या नाना-नानी से मिलने का अवसर भी कम हो गया है। ऐसे में, जब परिवार के भीतर ही संबंध कमजोर हो रहे हैं, तो सामाजिकता की बात करना बेमानी हो जाता है।
स्वास्थ्य पर प्रभाव
अकेलेपन का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। इससे व्यक्ति में तनाव, कुंठा, डिप्रेशन और अनिद्रा जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। सोशल मीडिया, जो जुड़ने का माध्यम होना चाहिए, अब तनाव का मुख्य कारण बन गया है।
तनाव के कारण
आने वाले समय में मजाक और कटाक्ष भी तनाव का कारण बन सकते हैं। सोशल मीडिया पर ज्ञान की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं, और हर कोई ज्ञानी बनने की कोशिश कर रहा है।
वैश्विक स्वास्थ्य संकट
इन परिस्थितियों के कारण डब्ल्यूएचओ ने अकेलेपन को वैश्विक स्वास्थ्य संकट घोषित किया है। मनोवैज्ञानिकों के लिए यह एक गंभीर चुनौती है कि वे अकेलेपन को कैसे दूर करें। रिश्तों को मजबूत करने, सामुदायिक गतिविधियों में भाग लेने और शारीरिक सक्रियता को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)