शरद पूर्णिमा: चंद्रमा की विशेषता और पूजा विधि

चंद्रमा की अमृतवृष्टि
सोलह कलाओं से युक्त चंद्रमा आज बरसाएंगे अमृत
हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। यह पर्व आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस वर्ष, यह पर्व 6 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के निकटतम होता है और उसकी किरणों में औषधीय गुण होते हैं। मान्यता है कि इस दिन खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखने से वह अमृत के समान हो जाती है। इस दिन भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी और भगवान शिव की पूजा से जीवन में सुख और समृद्धि आती है।
शरद पूर्णिमा का समय
पूर्णिमा तिथि 6 अक्टूबर की सुबह 11:26 बजे शुरू होगी और यह 7 अक्टूबर की सुबह 9:34 बजे तक रहेगी।
चंद्रमा की विशेषता
पूरे वर्ष में केवल शरद पूर्णिमा के दिन ही चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है। इस दिन उसकी किरणों से अमृत बरसता है, जो स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए लाभकारी होता है। खीर को रातभर चंद्रमा की शीतल किरणों के नीचे रखा जाता है और अगले दिन सूर्योदय से पहले इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करना चाहिए।
भगवान शिव की पूजा
आचार्य विद्याकांत पांडेय के अनुसार, शरद पूर्णिमा पर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की उपासना से सभी दुख दूर होते हैं और जीवन में खुशियों का आगमन होता है। इस दिन भगवान शिव की पूजा करना भी शुभ माना जाता है। विशेष वस्तुओं से शिवलिंग का अभिषेक करने से बिगड़े काम पूरे होते हैं।
अभिषेक विधि
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए सुबह स्नान के बाद जल से शिवलिंग का अभिषेक करें। फिर केसर अर्पित करें और महादेव के मंत्रों का जप करें। आर्थिक तंगी दूर करने के लिए गन्ने के रस से अभिषेक करना चाहिए। सुख-शांति के लिए बेलपत्र अर्पित करें और प्रभु का ध्यान करें। सभी कामों में सफलता के लिए दूध, दही और शहद से अभिषेक करना शुभ माना जाता है।
शिव चालीसा का पाठ
अभिषेक के बाद शिव चालीसा का पाठ करें। चंद्रमा और शिव के मंत्रों का जाप करके उन्हें प्रसन्न किया जा सकता है। इससे शरद कुंडली में चंद्रमा मजबूत होता है और मन शांत रहता है। धन और संपत्ति की वृद्धि के लिए कुबेर मंत्र का जाप करना भी लाभकारी है।