संत प्रेमानंद महाराज की किडनी ट्रांसप्लांट की आवश्यकता: जानें प्रक्रिया और महत्व

संत प्रेमानंद महाराज की स्वास्थ्य स्थिति
संत प्रेमानंद महाराज वर्तमान में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। उनकी दोनों किडनियां गंभीर रूप से प्रभावित हैं और वे पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज से ग्रस्त हैं। इस स्थिति के कारण उन्हें नियमित रूप से डायलिसिस कराना पड़ता है। हाल ही में, एक भक्त ने अपनी किडनी देने की इच्छा व्यक्त की, लेकिन महाराज ने इसे अस्वीकार कर दिया। इस बीमारी का एकमात्र समाधान किडनी ट्रांसप्लांट है। आइए जानते हैं किडनी ट्रांसप्लांट के बारे में।
किडनी ट्रांसप्लांट क्या है?
एक चिकित्सक के अनुसार, किडनी ट्रांसप्लांट एक चिकित्सा प्रक्रिया है, जिसमें एक स्वस्थ किडनी को एक डोनर से प्राप्त कर उस व्यक्ति के शरीर में प्रत्यारोपित किया जाता है, जिसकी किडनी ठीक से कार्य नहीं कर रही है। किडनी शरीर के लिए महत्वपूर्ण अंग हैं, जो रक्त से अपशिष्ट उत्पादों और अतिरिक्त तरल पदार्थों को छानती हैं। जब दोनों किडनियां कार्य करना बंद कर देती हैं, तो मरीज को जीवित रहने के लिए डायलिसिस या ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होती है।
किसे किडनी ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होती है?
डॉक्टर आमतौर पर तब किडनी ट्रांसप्लांट की सलाह देते हैं जब किडनी लगभग 85-90% कार्य करना बंद कर देती हैं और जीवित रहने के लिए डायलिसिस की आवश्यकता होती है। इसके सामान्य कारणों में मधुमेह, किडनी में दीर्घकालिक संक्रमण या आनुवंशिक किडनी रोग शामिल हैं। ट्रांसप्लांट को अक्सर जीवन भर डायलिसिस की तुलना में प्राथमिकता दी जाती है, क्योंकि यह जीवन की गुणवत्ता में सुधार करता है और जीवनकाल को बढ़ाता है।
किडनी ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया
यह प्रक्रिया मरीज के विस्तृत चिकित्सा परीक्षण से शुरू होती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे सर्जरी के लिए उपयुक्त हैं। सही किडनी का चयन करना सबसे महत्वपूर्ण कदम है। किडनी जीवित डोनर (जैसे परिवार के सदस्य) या मृत डोनर से प्राप्त की जा सकती है। सही किडनी चुनने के लिए, डॉक्टर रक्त समूह, ऊतकों के प्रकार (HLA मिलान) की जांच करते हैं और रिजेक्शन की संभावना को कम करने के लिए क्रॉस-मैच टेस्ट भी करते हैं।
किडनी का चयन और प्रत्यारोपण
एक बार सही किडनी मिलने पर, डोनर की किडनी को पेट के निचले हिस्से में रखकर और इसे मरीज के रक्त वाहिकाओं और मूत्राशय से जोड़कर सर्जरी की जाती है। ट्रांसप्लांट के बाद, नई किडनी के रिजेक्शन को रोकने के लिए जीवनभर इम्यूनोसप्रेसेंट दवाएं लेनी पड़ती हैं। उचित देखभाल और निगरानी के साथ, ट्रांसप्लांट की गई किडनी कई वर्षों तक कार्य कर सकती है, जिससे मरीज एक स्वस्थ और सक्रिय जीवन जी सकते हैं।