सरसों की खली: धान की खेती में जैविक खाद का क्रांतिकारी विकल्प

सरसों की खली: जैविक खाद का विकल्प
उत्तराखंड के किसान अब सरसों की खली को अपनी प्राथमिकता बना रहे हैं। पारंपरिक रासायनिक खादों के स्थान पर, वे इस जैविक विकल्प को अपनाकर न केवल उत्पादन में वृद्धि कर रहे हैं, बल्कि मिट्टी की गुणवत्ता और पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी सुधार कर रहे हैं।
किसानों की सोच में बदलाव
बागेश्वर, कपकोट, और गरुड़ जैसे क्षेत्रों में रासायनिक खादों के स्थान पर जैविक विकल्प तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। यह बदलाव भारतीय जैविक खेती के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो रहा है।
उत्पादन और गुणवत्ता में सुधार
स्थानीय किसान आर पी कांडपाल का कहना है कि पहले रासायनिक खादों से उत्पादन तो होता था, लेकिन मिट्टी की ताकत लगातार घट रही थी। जब उन्होंने सरसों की खली का उपयोग किया, तो फसल की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार देखा।
सतत खेती की दिशा में एक कदम
सरसों की खली पर्यावरण के अनुकूल कृषि के लिए एक प्रभावी जैविक समाधान है। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि इसका उपयोग सतत खेती को बढ़ावा देगा। इससे न केवल उत्पादन में वृद्धि होगी, बल्कि लोगों का स्वास्थ्य और पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा।