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सर्वाइवर्स गिल्ट: मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव और उबरने के उपाय

सर्वाइवर्स गिल्ट एक गंभीर मानसिक स्थिति है जो उन लोगों को प्रभावित करती है जो किसी हादसे में बचे हैं। यह गिल्ट उन्हें मानसिक पीड़ा देता है, जिससे वे अक्सर सवाल करते हैं कि वे क्यों बचे। इस लेख में हम इस गिल्ट के प्रभाव, ऐतिहासिक उदाहरणों, और इससे उबरने के उपायों पर चर्चा करेंगे। जानें कैसे लोग इस स्थिति से निपटते हैं और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाते हैं।
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सर्वाइवर्स गिल्ट: मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव और उबरने के उपाय

सर्वाइवर्स गिल्ट की परिभाषा

सर्वाइवर्स गिल्ट: 12 जून को एयर इंडिया की उड़ान AI171 के दुर्घटनाग्रस्त होने से 241 लोगों की जान चली गई। इस हादसे में विश्वास कुमार रमेश, जो सीट 11A पर थे, चमत्कारिक रूप से बच गए। उनका वायरल वीडियो, जिसमें वे मलबे से बाहर निकलते हुए दिखाई दे रहे हैं, ने 'सर्वाइवर्स गिल्ट' की चर्चा को फिर से जीवित कर दिया। यह मानसिक स्थिति उन लोगों को प्रभावित करती है जो युद्ध से लौटे हैं या किसी आपदा में बचे हैं।


सर्वाइवर्स गिल्ट का अनुभव

सर्वाइवर्स गिल्ट एक मानसिक पीड़ा है जो किसी भी प्रकार के हादसे में जीवित बचे लोगों को सताती है। उन्हें यह महसूस होता है कि उनकी जिंदगी किसी और की मौत की कीमत पर बची है। यह शारीरिक चोटों से कहीं अधिक गहरे मानसिक घाव छोड़ता है। बचे हुए लोग अक्सर सवाल करते हैं: 'मैं क्यों बचा?', 'क्या मैं किसी को बचा सकता था?', 'काश मैं भी मर गया होता!' यह गिल्ट डिप्रेशन, अकेलापन, और आत्मघाती विचारों में बदल सकता है।


टाइटैनिक का उदाहरण

टाइटैनिक की मिसाल

1912 में टाइटैनिक के डूबने से 1,500 से अधिक लोग मारे गए। जोसफ ब्रूस इस्मे, जो शिप के मालिकों में से एक थे, लाइफबोट में कूदकर बच गए। लेकिन अमेरिका और ब्रिटेन में उन्हें 'टाइटैनिक का कायर' कहा गया। इस्मे ने अपनी सारी दौलत दान कर दी और स्कॉटलैंड के एक बंगले में अकेले रहने लगे। उनके अंतिम शब्द थे, 'काश मैं भी वहीं रह गया होता!' टाइटैनिक के कई बचे लोग इस गिल्ट से जूझते रहे।


युद्ध के बाद का गिल्ट

द्वितीय विश्व युद्ध और वियतनाम युद्ध के बाद लौटे सैनिकों में यह गिल्ट स्पष्ट रूप से देखा गया। 1960 के दशक में मनोवैज्ञानिक डॉ. विलियम नाइडरलैंड ने होलोकास्ट के बचे यहूदियों पर शोध कर इसे 'सर्वाइवर्स सिंड्रोम' नाम दिया। वियतनाम युद्ध के बाद 'वियतनाम वेटरन्स अगेंस्ट द वॉर' रिपोर्ट में सैनिकों ने कहा, 'हम बचे, लेकिन हर दिन यही सवाल सताता है कि हम क्यों बचे?' वे अलग-थलग रहने, हिंसक होने, या आत्महत्या करने लगे।


अहमदाबाद हादसे का संदर्भ

अहमदाबाद हादसे का संदर्भ

विश्वास रमेश का अहमदाबाद हादसे में बचना एक चमत्कार था। लेकिन मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि वह सर्वाइवर्स गिल्ट का शिकार हो सकते हैं। 241 लोगों की मौत के बीच उनकी जिंदगी उन्हें बोझिल लग सकती है। संजय कपूर, जिनकी उसी दिन मृत्यु हुई, ने हादसे पर शोक जताया था। दिशा पाटनी और वीर दास जैसे सितारों ने भी संवेदना व्यक्त की।


गिल्ट से उबरने के उपाय

गिल्ट से उबरने के उपाय

कॉग्निटिव बिहेवियरल थैरेपी (CBT) और ग्रुप थैरेपी इस गिल्ट को कम करने में मदद करती हैं। कई बचे लोग सामाजिक कार्यों, जैसे सड़क सुरक्षा अभियानों, से जुड़कर राहत पाते हैं। उदाहरण के लिए, सड़क हादसे में बचे लोग अक्सर सुरक्षा जागरूकता के लिए काम करते हैं।

अमेरिका और चीन जैसे देश सैनिकों में गिल्ट और PTSD को कम करने के लिए ब्रेन टेक्नोलॉजी, जैसे 'टारगेटेड न्यूरोप्लास्टिसिटी ट्रेनिंग', पर काम कर रहे हैं। इसमें इलेक्ट्रोड्स के जरिए दिमाग को प्रोग्राम किया जाता है ताकि भावनात्मक दर्द कम हो। लेकिन न्यूरोसाइंटिस्ट्स चेतावनी देते हैं कि यह तकनीक आम लोगों तक पहुंची तो नैतिक और मानसिक खतरे बढ़ सकते हैं।