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सोशल मीडिया का बढ़ता दबाव: मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

सोशल मीडिया का बढ़ता दबाव आज के समाज में मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है। लोग अपनी वास्तविकता को भूलकर दूसरों की जीवनशैली की तुलना करने में लगे हैं, जिससे हीनभावना और असंतोष बढ़ रहा है। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे ऑनलाइन रहने का दबाव लोगों को अकेला बना रहा है और इसके समाधान क्या हो सकते हैं। क्या हमें अपने समय का प्रबंधन करना चाहिए? आइए इस पर चर्चा करें।
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सोशल मीडिया का बढ़ता दबाव: मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

सोशल मीडिया का प्रभाव

Bharat Ek Soch: वैश्विक स्तर पर यह चर्चा हो रही है कि विकास की गति को तेज करने के लिए एक व्यक्ति को प्रतिदिन कितने घंटे काम करना चाहिए। कुछ लोग 70 घंटे प्रति सप्ताह की सलाह दे रहे हैं, जबकि अन्य 90 घंटे की बात कर रहे हैं। वर्तमान में, हमारे समाज के एक बड़े हिस्से की मानसिक सेहत पर एक गंभीर समस्या का असर हो रहा है। यह समस्या बच्चों, युवाओं और बुजुर्गों को प्रभावित कर रही है, जिससे देश की उत्पादकता और कार्यक्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।


हम यहाँ सोशल मीडिया के प्रभाव की बात कर रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 100 करोड़ स्मार्टफोन उपयोगकर्ता हैं। फेसबुक पर 37 करोड़ से अधिक और इंस्टाग्राम पर 30 करोड़ से ज्यादा अकाउंट हैं। औसतन, एक व्यक्ति प्रतिदिन 5 से 5.5 घंटे स्मार्टफोन की स्क्रीन पर बिताता है। इसका मतलब है कि एक व्यक्ति जो दफ्तर में 48 घंटे काम करता है, वह उसी समय में 35 से 38 घंटे स्मार्टफोन पर भी खर्च करता है।


इसमें से अधिकांश समय सोशल मीडिया पर रील देखने या दूसरों की जीवनशैली को देखने में जाता है। यह सोचने का विषय है कि एक व्यक्ति अपने 24 घंटे में से 5 घंटे स्मार्टफोन और सोशल मीडिया पर बिताने के लिए किन-किन चीजों का त्याग कर रहा है। आज हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि हमेशा ऑनलाइन रहने का दबाव हमें किस तरह अकेला बना रहा है और यह डिजिटल दुनिया किस प्रकार हमारी जिम्मेदारियों को बढ़ा रही है।


सोशल मीडिया का दखल

पिछले 20 वर्षों में तकनीक ने हर व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है। 4G और 5G इंटरनेट ने घर और दफ्तर के बीच की दूरी को समाप्त कर दिया है। दफ्तर में कर्मचारी शारीरिक रूप से उपस्थित होता है, लेकिन वह डिजिटल रूप से भी सक्रिय रहता है। इस स्थिति में, ऑनलाइन समस्याओं का समाधान करने का दबाव हमेशा बना रहता है।


मान लीजिए, किसी ने व्हाट्सएप पर संदेश भेजा। डबल टिक दिखते ही सामने वाला समझ जाता है कि संदेश पढ़ा जा चुका है और वह तुरंत जवाब की प्रतीक्षा करता है। इस जवाबदेही को माइक्रो परफॉर्मेंस से जोड़ा जाता है, जिससे लोग मानसिक रूप से थक जाते हैं। इस ऑनलाइन दबाव के कारण, कई लोग खुद को खोते जा रहे हैं।


समय का प्रबंधन

ऑनलाइन रहने का दबाव युवाओं को 35-40 की उम्र में मानसिक थकान का सामना करने के लिए मजबूर कर रहा है। ऐसे में यह आवश्यक है कि एक डिजिटल संस्कृति विकसित की जाए, जिसमें हर व्यक्ति तय करे कि उसे कितनी देर ऑनलाइन रहना है। कंपनियों को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके कर्मचारी मानसिक रूप से स्वस्थ रहें।


क्या उन्हें साल में 10-15 दिन पूरी तरह से ऑफ़लाइन रहने का अवसर नहीं दिया जा सकता? इससे वे अपनी मानसिक थकान को दूर कर सकेंगे। आजकल, अधिकतर नौकरियों में लंबे समय तक ऑनलाइन रहने की आवश्यकता होती है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।


सोशल मीडिया का नकारात्मक प्रभाव

सोशल मीडिया ने लोगों को एक नई तरह की वास्तविकता में डाल दिया है, जहां वे दूसरों की जीवनशैली को देखकर अपनी जिंदगी को कमतर समझने लगते हैं। यह हीनभावना और असंतोष का कारण बन रहा है। लोग दूसरों की रील लाइफ को देखकर अपनी वास्तविकता को भूल जाते हैं।


इससे न केवल मानसिक शांति प्रभावित हो रही है, बल्कि पारिवारिक रिश्तों में भी दरार आ रही है। सोशल मीडिया ने दिखावे और तुलना की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया है, जिससे रिश्ते बनावटी हो गए हैं।


समाज में बदलाव की आवश्यकता

आज के समय में, सामाजिक मेलजोल के अवसर कम होते जा रहे हैं। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि ऑनलाइन रहने के दबाव को कैसे कम किया जाए और पारिवारिक रिश्तों को कैसे मजबूत किया जाए। बच्चों को सोशल मीडिया के नकारात्मक प्रभावों से बचाना भी आवश्यक है।


इसलिए, यह जरूरी है कि हम अपने समय का प्रबंधन करें और सोशल मीडिया के दखल को सीमित करें।


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